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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१७८

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ताँगेवाले की बड़


लेखक को इलाहाबाद मे एक बार ताँगे मे लम्बा सफर करने का सयोग हुआ। ताँगेवाले मियाँ जुम्मन बड़े बातूनी थे। उनकी उम्र पचास के करीब थी, उनकी बड से रास्ता इस आसानी से तय हुआ कि कुछ मालूम ही न हुआ। मै पाठकों के मनोरजन के लिए उनकी जीवनी और बड पेश करता हूँ।

जुम्मन—कहिए बाबूजी, तॉगा. . .वह तो इस तरफ देखते ही नहीं शायद इक्का लेगे। मुबारक। कमखर्च बालानशीन, मगर कमर रह जायगी बाबूजी, सडक खराब है, इक्के में तकलीफ होगी। अखबार में पढ़ा होगा कल चार इक्के इसी सडक पर उलट गये। चुगी (म्युनिस्पिल्टी) सलामत रहे, इक्के बिलकुल बन्द हो जायेंगे। मोटर, लारी तो सडक खराब करे और नुकसान हो हम गरीब इक्केवालों का। कुछ दिनों में हवाई जहाज़ में सवारियाँ चलेगी, तब हम इक्के- वालों को सड़क मिल जायगी। देखेगे उस वक्त इन लारियों को कौन पूछता है, अजायबघरो में देखने को मिले तो मिले। अभी तो उनके दिमाग ही नहीं मिलते। अरे साहब, रास्ता निकलना दुश्वार कर दिया है, गोया कुल सड़क उन्ही के वास्ते है और हमारे वास्ते पटरी और धूल! अभी ऐठते है, हवाई जहाजों को आने दीजिए। क्यों हुजूर, इन मोटरवालों की आधी आमदनी लेकर सरकार सडक की मरम्मत मे क्यों नहीं खर्च करती? या पेट्रोल पर चौगुना टैक्स लगा दे। यह अपने को टैक्सी कहते है, इसके माने तो टैक्स देनेवाले के है। ऐ हुजूर, बुढिया कहती है कि इक्का छोड़ तॉगा लिया, मगर अब ताँगे मे भी कुछ नही रहा, मोटर लो। मैंने जवाब दिया कि अपने हाथ-पैर की सवारी रखोगी या दूसरे के। बस हुजूर वह चुप हो गयी। और सुनिए, कल की बात है, कल्लन ने मोटर चलाया, मियॉ एक दरस्त से टकरा गये, वही शहीद हो गये। एक बेवा और दस बच्चे यतीम छोड़े। हुजूर, मैं गरीब आदमी हूँ, अपने बच्चों को पाल लेता हूँ, और क्या चाहिए। आज कुछ कम चालीस साल से इक्केवानी करता हूँ, थोड़े दिन और रहे वह भी इसी