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तांगेवाले की बड़
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तरह चाबुक लिये कट जायेगे। फिर हुजूर देखे, तो इक्का-ताँगा और घोडा गिरे पर भी कुछ-न-कुछ दे ही जायगा! बरअक्स इसके मोटर बन्द हो जाय तो हुजूर उसका लोहा दो रुपये मे भी कोई न लेगा। हुजूर घोड़ा घोडा ही है, हर हालत में आपको मजिल तक पहुंचा ही देगा, मोटर जब देखिए रास्ते मे धरा है, सवारियों पैदल जा रही है, या हाथी की लाश खीच रही है। हुजूर, घोडे पर हर तरह का काबू और हर सूरत मे नफा। मोटर मे कोई आराम थोड़े ही है। ताँगे मे सवारी भी सो रही है, हम भी सो रहे है और घोड़ा भी सो रहा है मगर मजिल तय हो रही है। मोटर के शोर से तो कान के पर्दे फटते है और हॉकनेवाले को तो जैसे चक्की पीसना पडता है।

ऐ हुजूर, औरतें भी इक्के-ताँगे को बड़ी बेदर्दी से इस्तेमाल करती है। कल की बात है, सात-आठ औरते आयी और पूछने लगी कि तिरबेनी का क्या लोगे। हुजूर, हमारे निखं तो तय है, कोई ह्वाइटवे की दुकान तो है नहीं कि साल मै चार बार सेल हो। निखं से हमारी मजदूरी चुका दो और दुआएँ लो। यो तो हुजूर मालिक है, चाहे एक बार कुछ न दे मगर सरकार, यह औरते एक रुपये का काम हो तो आठ ही आना देती है। हुजूर, हम तो साहब लोगो का काम करते है। शरीफ हमेशा शरीफ रहते है और हुजूर औरत हर जगह औरत ही रहेगी। एक तो पर्दे के बहाने से हम लोग हटा दिये जाते है। इक्के-ताँगे में दर्जनो सवारियां और बच्चे बैठ जाते हैं। एक बार इक्के की कमानी टूटी तो उससे एक न दो पूरी तेरह औरते निकल आयी। मैं गरीब आदमी मर गया। हुजूर सबको हैरत होती है कि किस तरह ऊपर- नीचे बैठ लेती है कि कैची मारकर बैठती है। ताँगे मे भी जान नहीं बचती। दोनो घुटनों पर एक-एक बच्चा बैठा लेती है और उनके ऊपर एक-एक और, और उन्ही मे से एक नन्हे बच्चे को भी ले लेती है। इस तरह हुजूर ताँगे के अन्दर सर्कस का-सा नक्शा हो जाता है। इस पर भी पूरी-पूरी मजदूरी यह देना जानती नहीं। पहले तो पर्दे का जोर था। मर्दो से बातचीत हुई और मजदूरी मिल गयी। जब से 'नुमाइश हुई, पर्दा उखड़ गया और औरते बाहर आने-जाने लगी। हम गरीबों का सरासर नुकसान होता है। हुजूर हमारा भी अल्लाह मालिक है। साल मे मैं भी बराबर हो रहता हूँ। सौ सुनार की तो एक लोहार की भी हो जाती है। पिछले महीने दो घंटे सवारी के बाद आठ आने पैसे देकर बी अन्दर भागीं। मेरी निगाह जो ताँगे पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि एक सोने का झुमका गिरकर रह