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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१८०

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गुप्त धन
 

गया। मैं चिल्लाया, माई यह क्या, तो उन्होने कहा अब एक हब्बा और न मिलेगा और दरवाजा बन्द। मैं दो-चार मिनट तक तो तकता रह गया मगर फिर वापस चला आया। मेरी मजदूरी माई के पास रह गयी और उनका झुमका मेरे पास।

कल की बात है, चार स्वराजियो ने मेरा लॉगा किया, कटरे से स्टेशन चले, हुकुम मिला कि तेज चलो। रास्ते भर गाँधीजी की जय ! गाँधीजी की जय! पुकारते गये। कोई साहब बाहर से आ रहे थे और बडी भीडे और जुलूस थे। कठपुतली की तरह रास्ते भर उछलते-कूदते गये। स्टेशन पहुंचकर मुश्किल से चार आने दिये। मैने पूरा किराया मॉगा, मगर वहाँ गाँत्रीजी की जय! गाँधीजी की जय के सिवाय क्या था! मै चिल्लाया मेरा पेट! मेरा पेट! मेरा तागा थिएटर का स्टेज था, आप नाचे-कूदे और अब मजदूरी नहीं देते! मगर मै चिल्लाता ही रहा, वह भीड मे गायब हो गये। मै तो समझता हूँ कि लोग पागल हो गये है, स्वराज मॉगते है, इन्ही हरकतो पर स्वराज मिलेगा! ऐ हुजूर, अजब हवा चल रही है। सुधार तो करते नहीं, स्वराज मांगते है। अपने करम तो पहले दुरुस्त हो ले। मेरे लडके को बरगलाया, उसने सब कपडे इकट्ठे किये और लगा जिद करने कि आग लगा दूंगा। पहले तो मैने समझाया कि मैं गरीब आदमी हूँ, कहाँ से और कपडे लाऊँगा, मगर जब वह न माना तो मैंने गिराकर उसको खूब मारा। फिर क्या था होश ठिकाने हो गये। हुजूर, जब वक्त आयेगा तो हमीं इक्के-लॉगेवाले स्वराज हॉककर लायेगे, मोटर पर स्वराज हर्गिज न आयेगा। पहले हमको पूरी मजदूरी दो फिर स्वराज' मांगो। हुजूर औरते तो औरते, हम उनसे न जबान खोल सकते है न कुछ कह सकते है, वह जो कुछ दे देती है, लेना पड़ता है। मगर कोई-कोई नकली शरीफ लोग औरतों के भी कान काटते है। सवार होने से पहले हमारे नम्बर देखते है, अगर कोई चीज रास्ते में उनकी लापरवाही से गिर जाय तो वह भी हमारे सिर ठोंकते है और मजा यह कि किराया कम दें तो हम उफ् तक न करे। एक बार का जिक्र सुनिए, एक नकली साहब 'वेल वेल' करके लाट साहब के दफ्तर गये, मुझको बाहर छोड़ा और कहा कि एक मिनट में आते है, वह दिन है कि आज तक इन्तजार ही कर रहा हूँ। अगर यह हजरत कही दिखायी दिये तो एक बार तो दिल खोलकर बदला ले लूंगा फिर चाहे जो कुछ हो।