पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
इक्जत का खून
२३
 

आकर खड़ी हो गयी। अब की उस खूनी परी के हाथों में एक पतली-सी कमची थी। उसके तेवर देखकर मेरा खून सर्द हो गया। उसकी आँखो मे एक खून पीनेवाली वहशत, एक कातिल पागलपन दिखायी दे रहा था। मेरी तरफ शरारत-भरी नजरों से देखकर बोली—बेगम साहबा, मैं तुम्हारी बदजबानियो का ऐसा सबक देना चाहती हूँ जो तुम्हें सारी उम्र याद रहे। और मेरे गुरू ने बतलाया है कि कमची से ज्यादा देर तक ठहरनेवाला और कोई सबक नहीं होता।

यह कहकर उस जालिम ने मेरी पीठ पर एक कमची जोर से मारी। मैं तिलमिला गयी, मालूम हुआ कि किसी ने पीठ पर आग की चिनगारी रख दी। मुझसे जब्त न हो सका। माँ-बाप ने कभी फूल की छडी से भी न मारा था। जोर से चीखे मार-मारकर रोने लगी। स्वाभिमान, लज्जा, सब लुप्त हो गयी। कमची की डरावनी और रौशन असलियत के सामने और सब भावनाएँ गायब हो गयी। उन हिन्दू देवियों के दिल शायद लोहे के होते होगे जो अपनी आन पर आग मे कूद पड़ती थी। मेरे दिल पर तो इस वक्त यही खयाल छाया हुआ था कि इस मुसीबत से क्योंकर छुटकारा हो। सईद तस्वीर की तरह खामोश खड़ा था। मै उसकी तरफ फ़रियाद की आँखों से देखकर बड़े विनती के स्वर में बोली—सईद, खुदा के लिए मुझे इस जालिम से बचाओ, मै तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, तुम मुझे जहर दे दो, स्वजर से गर्दन काट लो लेकिन यह मुसीबत सहने की मुझमें ताब नहीं। उन दिलजोइयों को याद करो, मेरी मुहब्बत को याद करो, उसी के सदके इस वक्त मुझे इस अजाब से बचाओ, खुदा तुम्हे इसका इनाम देगा।

सईद इन बातो से कुछ पिघला। हसीना की तरफ डरी हुई आँखो से देखकर बोला—जरीना, मेरे कहने से अब जाने दो। मेरी खातिर से इन पर रहम करो।

जरीना तेवर बदलकर बोली—तुम्हारी खातिर से सब कुछ कर सकती हूँ, गालियाँ नही बर्दाश्त कर सकती।

सईद—क्या अभी तुम्हारे खयाल में गालियों की काफ़ी सजा नही हुई?

जरीना—तब तो आपने मेरी इज्जत की खूब कद्र की! मैंने रानियो से चिलमचियाँ उठवायी है, यह बेगम साहबा है किस खयाल में? मै इसे अगर कुन्द छुरी से काटू तब भी इसकी बदजबानियों की काफी सजा न होगी।

सईद—मुझसे अब यह जुल्म नहीं देखा जाता।

जरीना—आखें बन्द कर लो।