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गुप्त धन
 

गुल—छोटे साहब के बंगले पर। सरकारी काम से जाना है।

ताँगे०—हुजूर को बहाँ कितनी देर लगेगी?

गुल—यह मै कैसे बता दूं, यह तो हो नहीं सकता कि साहब मुझसे बार-बार बैठने को कहे, और मै उठकर चला आऊँ। सरकारी काम है, न जाने कितनी देर लगे। बड़े अच्छे आदमी है बेचारे। मजाल नहीं कि जो बात कह दूं, उससे इनकार कर दें। आदमी को ग़रूर न करना चाहिए। गरूर करना शैतान का काम है। मगर कई थानेदारो से जवाब तलब करा चुका हूँ। जिसको देखा कि रिआया को ईजा पहुँचाता है, उसके पीछे पड़ जाता हूँ।

ताँगे०—हुजूर, पुलिस बड़ा अधेर करती है। जब देखो बेगार, कभी आधी रात को बुला भेजा, कभी फजिर को। मरे जाते है हुजूर। उस पर हर मोड़ पर सिपाहियों को पैसे चाहिए। न दें, तो झूठा चालान कर दे।

गुल—सब जानता हूँ जी, अपनी झोपड़ी में बैठा सारी दुनिया की सैर किया करता हूँ। वही बैठे-बैठे बदमाशों की खबर लिया करता हूँ। देखो, ताँगे को बँगले के भीतर न ले जाना। बाहर फाटक पर रोक देना।

ताँगे०—अच्छा हुजूर। अच्छा अब देखिए वह सिपाही मोड पर खड़ा है। पैसे के लिए हाथ फैलायेगा। न दूं तो ललकारेगा। मगर आज कसम कुरान की, टका-सा जवाब दे दूंगा। हुजूर बैठे है, तो क्या कर सकता है।

गुल—नही, नही, जरा-जरा सी बात पर मैं इन छोटे आदमियों से नहीं लड़ता। पैसे दे देना। मैं तो पीछे से बचा की खबर लूंगा। मुअत्तल न करा दूं तो सही। दूबदू गाली-गलौज करना, इन छोटे आदमियो के मुंह लगना मेरी आदत नहीं।

ताँगेवाले को भी यह बात पसन्द आयी। मोड़ पर उसने सिपाही को पैसे दे दिये। तांगा साहब के बंगले पर पहुँचा। खॉ साहब उतरे, और जिस तरह कोई शिकारी पैर दबा-दबाकर चौकन्नी आँखों से देखता हुआ चलता है, उसी तरह आप बँगले के बरामदे में जाकर खड़े हो गये। बैरा बरामदे मे बैठा था। आपने उसे देखते ही सलाम किया।

बैरा—हुजूर तो अधेर करते है। सलाम हमको करना चाहिए और आप पहले ही हाथ उठा देते है

गुल—अजी इन बातों में क्या रक्खा है। खुदा की निगाह में सब इन्सान बराबर है।