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पर्बत-यात्रा
२०१
 

बैरा—हुजूर को अल्लाह सलामत रक्खे, क्या बात कही है। हक तो यही है, पर आदमी अपने को कितना भूल जाता है! यहाँ तो छोटे-छोटे अमले भी इतज़ार करते रहते है कि यह हाथ उठाये। साहब को इत्तला कर दूं?

गुल—आराम मे हो तो रहने दो, अभी ऐसी कोई जल्दी नहीं।

बैरा—जी नहीं हुजूर, हाजिरी पर से तो कभी उठ चुके, कागज-वागज पढ़ते होगे।

बैरा—अब इसका तुम्हें अख्तियार है, जैसा मौका हो वैसा करो। मौका-महल पहचानना तुम्ही लोगों का काम है। क्या हुआ, तुम्हारी लडकी तो खैरियत से है न?

बैरा—हाँ हुजूर, अब बहुत मजे मे है। जब से हुजूर ने उसके घरवालो को बुलाकर डॉट दिया है, तब से किसी ने चूं भी नहीं किया। लड़की हुजूर की जान-माल को दुआ देती है।

बैरे ने साहब को खॉ साहब की इत्तला की, और एक क्षण मे खाँ साहब जूते उतारकर साहब के सामने जा खड़े हुए और सलाम करके फर्श पर बैठ गये। साहब का नाम काटन था।

काटन—ओ! ओ! यह आप क्या करता है, कुर्सी पर बैठिए, कुर्सी पर बैठिए।

खाँ—बहुत मजे मे बैठा हूँ हुजूर। आपके बराबर भला बैठ सकता हूँ! आप बादशाह, मैं रैयत।

काटन—नही, नही आप हमारा दोस्त है।

खाँ—हुजूर चाहे मेरे को आफताब बना दे, पर मैं तो अपनी हकीकत समझता हूँ। बदा उन लोगों में नहीं है जो हुजूर के करम से चार हरफ पढ़कर जमीन पर पॉव नही रखते और हुजूर लोगों की बराबरी करने लगते है।

काटन—खाँ साहब, आप बहुत अच्छा आदमी है। हम आज के पाँचवे दिन नैनीताल जा रहा है। वहाँ से लौटकर आपसे मुलाकात करेगा! आप तो कई बार नैनीताल गया होगा। अब तो सब रईस लोग वहां जाता है।

खाँ साहब नैनीताल क्या, बरेली तक भी न गये थे, पर इस समय कैसे कह देते कि मैं वहाँ कभी नही गया। साहब की नजरो से गिर न जाते। साहब समझते कि यह रईस नही, कोई चरकटा है। बोले—हाँ हुजूर, कई बार हो आया हूँ।