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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२००

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गुप्त धन
 


रहकर आप इतना नाम हासिल कर सकते है जितना यहाँ जिन्दगी भर भी न होगा। बस, और क्या कहूँ।

कुँअर—वहाँ बड़े बडे अंग्रेजों से मुलाकात हो जायगी?

खाँ—जनाब, दावतो के मारे आपको दम मारने की मोहलत न मिलेगी।

कुँवर—जी तो चाहता है कि एक बार देख ही आये।

खाँ—तो वस तैयारी कीजिए।

सभाजन ने जब देखा कि कुँअर साहब नैनीताल जाने के लिए तैयार हो गये तो सब के सब हाँ मे हाँ मिलाने लगे।

व्यास—पर्वत-कदराओं मे कभी-कभी योगियो के दर्शन हो जाते है।

लाला—हाँ साहब, सुना है—दो-दो सौ साल के योगी वहाँ मिलते है। जिसकी और एक बार आँख उठाकर देख लिया, उसे चारों पदार्थ मिल गये।

वाजिद—मगर हुजूर चले, तो इस ठाठ से चले कि वहाँ के लोग भी कहें कि लखनऊ के कोई रईस आये है।

लाला—लक्ष्मी हथिनी को जरूर ले चलिए। वहाँ कभी किसी ने हाथी की सूरत काहे को देखी होगी। जब सरकार सवार होकर निकलेंगे और गगा-जमुनी हौदा चमकेगा तो लोग दग हो जायेंगे।

व्यास—एक डका भी हो, तो क्या पूछना।

कुँअर—नहीं साहब, मेरी सलाह डंके की नहीं है। देश देखकर भेस बनाना चाहिए।

लाला—हाँ, डके की सलाह तो मेरी भी नहीं है। पर हाथी के गले में घटा जरूर हो।

खाँ—जब तक वहाँ किसी दोस्त को तार दे दीजिए कि एक पूरा बंगला ठीक कर रक्खे। छोटे साहब को भी उसी मे ठहरा लेंगे।

कुँअर—वह हमारे साथ क्यों ठहरने लगे। अफसर है।

खाँ—उनको लाने का जिम्मा हमारा। खीच-खाँचकर किसी न किसी तरह ले ही आऊँगा।

कुँअर—अगर उनके साथ ठहरने का मौका मिले, तब तो मैं समझू नैनीताल का जाना पारस हो गया।

एक हफ्ता गुजर गया। सफर की तैयारियाँ हो गयीं। प्रातःकाल काटन साहब