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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२०२

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गुप्त पन
 


कुँअर—भई हमसे कुछ करते-घरते नही बनता।

रामेश्वरी—हमने कह दिया, हम जाने नही देगे। अगर तुम चले गये तो मुझे बड़ा रज होगा। तुम्ही लोगो से तो महफ़िल की शोभा होगी और अपना कौन बैठा हुआ है।

कुँअर—अब तो साहब को लिख भेजने का भी मौका नहीं है। वह दफ्तर चले गये होगे। मेरा सब असबाब बँध चुका है। नौकरों को पेशगी रुपया दे चुका कि चलने की तैयारी करे। अब कैसे रुक सकता हूँ।

रामेश्वरी—कुछ भी हो, जाने न पाओगे।

सुशीला—दो-चार दिन बाद जाने मे ऐसी कौन-सी बडी हानि हुई जाती है?

कुँअर साहब बडे धर्म-संकट मे पड़े, अगर नही जाते तो छोटे साहब से झूठे पडते है। वह अपने दिल में कहेगे कि अच्छे वेहूदे आदमी के साथ पाला पड़ा। अगर जाते है तो स्त्री से बिगाड़ होता है, साली मुंह फुलाती है। इसी चक्कर में पडे हुए बाहर आये तो मियाँ वाजिद बोले—हुजूर इस वक्त कुछ उदास मालूम होते है।

व्यास—मुद्रा तेजहीन हो गयी है।

कुँअर—भई, कुछ न पूछो, बड़े संकट में हूँ।

बाजिद—क्या हुआ हुजूर, कुछ फरमाइए तो?

कुँअर—यह भी एक विचित्र ही देश है।

व्यास—बर्मावतार, प्राचीन काल से यह ऋषियों की तपोभूमि है।

लाला—क्या कहना है, संसार मे ऐसा देश दूसरा नहीं।

कुँअर—जी हाँ, आप जैसे गौखे और किस देश मे होगे। बुद्धि तो हम लोगो को छू भी नहीं गयी।

वाजिद—हुजूर, अक्ल के पीछे तो हम लोग लट्ठ लिये फिरते है।

व्यास—धर्मावतार, कुछ कहते नही बनता। बडी हीन दशा है।

कुँअर—नैनीताल जाने को तैयार था। अब बड़ी साली कहती है कि मेरे बच्चे का मुंडन है, मैं न जाने दूंगी, चले जाओगे तो मुझे रंज होगा। बतलाइए, अब क्या करूँ। ऐसी मूर्खता और कहाँ देखने में आयेगी। पूछो मुंडन नाई करेगा, नाच-तमाशा देखनेवालों की शहर में कमी नही, एक मैं न हूँगा न सही, मगर उनको कौन समझाये।