पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पर्वत-यात्रा
२११
 


कुँअर—भई, यह तो नयी बला गले पड़ी।

वाजिद—यहाँ तो हुजूर, हमारी अक्ल भी काम नहीं करती।

कुंअर—कोई जाकर खाँ साहब को बुला लाओ। कहना, अभी चलिए। ऐसा न हो कि वह देर करे और सिविल सर्जन यहाँ सिर पर सवार हो जाय।

लाला—सिविल सर्जन की फीस भी बहुत होगी?

कुँअर—अजी तुम्हे फीस की पड़ी है, यहाँ जान आफत में है। अगर सौ दो सौ देकर गला छूट जाय तो अपने को भाग्यवान समझू।

वाजिदअली ने फिटन तैयार करायी और खॉ साहब के घर पहुँचे। देखा तो वह असवाब बँधवा रहे है। उनसे सारा किस्सा बयान किया और कहा अभी चलिए। आपको बुलाया है।

खाँ—मामला बहुत टेढा है। बडी दौड़-धूप करनी पडेगी। कसम खुदा की, तुम सबके सब गर्दन मार देने के लायक हो। जरा देर के लिए मैं टल क्या गया कि सारा खेल ही बिगाड दिया।

वाजिद—खॉ साहब हमसे तो उडिए नही। कुँअर साहब बौखलाये हुए है। दो-चार सौ का वारा-न्यारा है। चलकर सिविल सर्जन को मना कर दीजिए।

खॉ—चलो, शायद कोई तदबीर सूझ जाय।

दोनो आदमी सिविल सर्जन के बंगले की तरफ चले। वहाँ मालूम हुआ कि साहब कुंअर साहब के मकान पर गये है। फौरन फिटन घुमा दी, और कुँअर साहब की कोठी पर पहुँचे। देखा तो सर्जन साहब एनेमा लिये हुए कुंअर साहब की चारपाई के सामने बैठे हुए है।

खॉ—मैं तो हुजूर के बंगले से चला आ रहा हूँ। कुंअर साहब का क्या हाल है?

डाक्टर—पेट में दर्द है। अभी पिचकारी लगाने से अच्छा हो जायगा।

कुँअर—हुजूर, अब दर्द बिलकुल नहीं है। मुझे कभी-कभी यह मर्ज हो जाता है और आप ही आप अच्छा हो जाता है।

डाक्टर—ओ, आप डरता है। डरने का कोई बात नहीं है। आप एक मिनट मे अच्छा हो जायगा।

कुँअर—हुजूर मै बिलकुल अच्छा हूँ। अब कोई शिकायत नहीं है।

डाक्टर—डरने की कोई बात नहीं, यह सब आदमी यहाँ से हट जाय, हम एक मिनट मे अच्छा कर देगा।

खाँ साहब ने डाक्टर के कान मे कहा—हुजूर, अपनी रात की डबल फीस और