सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पर्वत-यात्रा
२१३
 


नहीं सकता। जरा देर के लिए घर चला गया, उसका तो इतना ताबान देना पड़ा। नैनीताल चला जाऊँ तो शायद कोई आपको उठा ही ले जाय।

कुँअर—मजे से दो चार दिन जल्से देखेंगे, नैनीताल में यह मजे कहाँ मिलते। व्यास जी, अब तो यो नहीं बैठा जाता। देखिए, आपके भंडार में कुछ है, दो-चार बोतले निकालिए, कुछ रग जमे।[]

—माधुरी, अप्रैल १९२९


  1. रतननाथ सरशार-कृत 'सरे कोहसार के आधार पर।