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गुप्त धन
 


है। तुम मर जाओगे और यह छलनी तुम्हारे प्रेमोपहारो से दामन भरे, दिल में तुम्हारी मूर्खता पर हंसती हुई, दूसरे ही दिन अपने प्रियतम के पास चली जायगी। दोनो तुम्हारी दौलत के मजे उडायेगे और तुम्हारी वचित-दलित आत्मा को तडपायेगे।

'सरदार साहब, विश्वास मानिए, यह आवाज मुझे अपने ही हृदय के किसी स्थल से सुनायी दी। मैने उसी वक्त तलवार निकालकर कमर से रख दी। आत्महत्या का विचार जाता रहा, और एक ही क्षण में बदले का प्रबल उद्वेग हृदय मे चमक उठा। देह का एक-एक परमाणु एक आन्तरिक ज्वाला से उत्तप्त हो उठा। एक-एक रोएँ से आग-सी निकलने लगी। इसी वन जाकर उसकी कपट-लीला का अन्त कर दूं। जिन आँखो की एक निगाह के लिए अपने प्राण तक निछावर करता था, उन्हे सदैव के लिए ज्योतिहीन कर दूं। उन विषाक्त अधरों को सदैव के लिए स्वरहीन कर दूं। जिस हृदय मे इतनी निष्ठुरता, इतनी कठोरता और इतना कपट भरा हुआ हो, उसे चीरकर पैरो से कुचल डालूँ। खून-सा सिर पर सवार हो गया। सरफराज की सारी महत्ता, सारा माधुर्य, सारा भाव-विलास दूपित मालूम होने लगा। उस वक्त अगर मुझे मालूम हो जाता कि सरफराज की किसी ने हत्या कर डाली है, तो शायद मै उस हत्यारे के पैरों का चुम्बन करता। अगर सुनता कि वह मरणासन्न है, तो उसके दम तोड़ने का तमाशा करता। खून का दृढ सकल्प करके मैने दुहरी तलवारे कमर मे लगायी और उसके शयनागार में दाखिल हुआ। जिस द्वार पर जाते ही आशा और भय का संग्राम होने लगता था, वहाँ पहुँचकर इस वक्त मुझे वह आनन्द हुआ जो शिकारी को शिकार करने मे होता है। सरदार साहब, उन भावनाओं और उद्गारो का जिक्र न करूँगा, जो उस समय मेरे हृदय को आन्दोलित करने लगे। अगर वाणी मे इतनी सामर्थ्य हो भी, तो मन को इस चर्चा से उद्विग्न नहीं करना चाहता। मैने दबे पाँव कमरे में कदम रखा। सरफ़राज विलासमय निद्रा में मग्न थी। मगर उसे देखकर मेरे हृदय में एक विचित्र करुणा उत्पन्न हुई। जी हाँ, वह क्रोध और उत्ताप न जाने कहाँ गायब हो गया। उसका क्या अपराध है? यह प्रश्न आकस्मिक रूप से मेरे हृदय में पैदा हुआ। उसका क्या अपराध है? अगर उसका वही अपराध है, जो इस समय मैं कर रहा हूँ, तो मुझे उससे बदला लेने का क्या अधिकार है? अगर वह अपने प्रियतम के लिए उतनी ही विकल, उतनी ही अधीर, उतनी ही आतुर है, जितना मैं हूँ, तो उसका क्या दोष है? जिस तरह मै अपने दिल से