यह कहकर राजा साहब ने मेरी ओर पूर्ण नेत्रो से देखकर कहा—बतलाइए आप मेरी क्या मदद कर सकते है।
मैने विस्मय से कहा—मै?
राजा साहब ने मेरा उत्साह बढ़ाते हुए कहा—हॉ, आप। आप जानते है, मैने इतने आदमियो को छोडकर आपको क्यों अपना विश्वासपात्र बनाया और क्यों आपसे यह भिक्षा मॉगी? यहाँ ऐसे आदमियो की कमी नहीं है, जो मेरा इशारा पाते ही उस दुष्ट के टुकड़े उड़ा देगे, सरे बाजार उसके रक्त से भूमि को रंग देगे। जी हाँ, एक इशारे से उसकी हड्डियों का बुरादा बना सकता हूँ, उसके नही मे कीलें ठुकवा सकता हूँ, मगर मैंने सबको छोडकर आपको छाँटा, जानते हो क्यो? इसलिए कि मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है। वह विश्वास, जो मुझे अपने निकटतम आदमियों पर भी नहीं। मै जानता हूँ कि तुम्हारे हृदय मे यह भेद उतना ही गुप्त रहेगा, जितना मेरे। मुझे विश्वास है कि प्रलोभन अपनी चरम शक्ति का उपयोग करके भी तुम्हें नही डिगा सकता। पाशविक अत्याचार भी तुम्हारे अधरों को नही खोल सकते। तुम बेवफाई न करोगे, दशा न करोगे, इस अवसर से अनुचित लाभ न उठाओगे। जानते हो, इसका पुरस्कार क्या होगा? इसके विषय मे तुम कुछ भी शका न करो। मुझमें और चाहे कितने ही दुर्गुण हो, कृतघ्नता का दोष नहीं है। बड़े से बड़ा पुरस्कार जो मेरे अधिकार मे है, वह तुम्हे दिया जायगा। मनसब, जागीर, धन, सम्मान—सब तुम्हारी इच्छानुसार दिये जायेंगे। इसका सम्पूर्ण अधिकार तुमको दिया जायगा, कोई दखल न देगा। तुम्हारी महत्वाकाक्षा को उच्चतम शिखर तक उड़ने को आजादी होगी। तुम खुद फ़रमान लिखोगे और मैं उस पर ऑखे बन्द करके दस्तखत करूंगा। बोलो, कब जाना चाहते हो? उसका नाम और पता इस कागज पर लिखा हुआ है, इसे अपने हृदय पर अकित कर लो, और काग़ज फाड़ डालो। तुम खुद समझ सकते हो कि मैंने कितना बड़ा भार तुम्हारे ऊपर रखा है। मेरी आबरू, मेरी जान, तुम्हारी मुट्ठी में है। मुझे विश्वास है कि तुम इस काम को सुचारु रूप से पूरा करोगे। जिन्हें अपना सहयोगी बनाओगे, वे भरोसे के आदमी होगे। तुम्हें अधिकतम बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता और धैर्य से काम लेना पडेगा। एक असयत शब्द, एक क्षण का विलम्ब, जरा-सी लापरवाही मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए प्राणघातक होगी। दुश्मन घात में बैठा हुआ है, 'कर तो डर, न कर तो डर' का मामला है। यों ही गद्दी से उतारने के मसूबे सोचे जा रहे है, इस रहस्य के खुल जाने पर क्या दुर्गति होगी, इसका अनुमान