होली की छुट्टी
वर्नाक्युलर फ़ाइनल पास करने के बाद मुझे एक प्राइमरी स्कूल में जगह मिली,
जो मेरे घर से ग्यारह मील पर था। हमारे हेडमास्टर साहब को छुट्टियों में भी
लड़कों को पढ़ाने की सनक थी। रात को लड़के खाना खाकर स्कूल मे आ जाते
और हेडमास्टर साहब चारपाई पर लेटकर अपने खर्राटों से उन्हे पढ़ाया करते।
जब लड़कों मे धौल-चप्पा शुरू हो जाता और शोर-गुल मचने लगता तब यकायक
वह खरगोश की नीद से चौक पड़ते और लड़कों को दो-चार तमाचे लगाकर
फिर अपने सपनो के मजे लेने लगते। ग्यारह-बारह बजे रात तक यही ड्रामा होता
रहता, यहाँ तक कि लड़के नींद से बैकरार होकर वही टाट पर सो जाते। अप्रैल
में सालाना इम्तहान होनेवाला था, इसलिए जनवरी ही से हाय-तोबा मची हुई
थी। नाइट स्कूलों पर इतनी रियायत थी कि रात की क्लासो में उन्हे न तलब
किया जाता था, मगर छुट्टियाँ बिलकुल न मिलती थीं। सोमवती अमावस आयी
और निकल गयी, बसन्त आया और चला गया, शिवरात्रि आयी और गुजर गयी,
और इतवारों का तो ज़िक्र ही क्या है। एक दिन के लिए कौन इतना बड़ा सफर
करता, इसलिए कई महीनों से मुझे घर जाने का मौका न मिला था। मगर अबकी
मैंने पक्का इरादा कर लिया था कि होली पर जरूर घर जाऊँगा, चाहे नौकरी
से हाथ ही क्यों न धोने पड़ें। मैने एक हफ्ते पहले ही से हेडमास्टर साहब को अल्टी-
मेटम दे दिया कि २० मार्च को होली की छुट्टी शुरू होगी और बन्दा १९ की शाम
को रुखसत हो जायगा। हेडमास्टर साहब ने मुझे समझाया कि अभी लड़के हो,
तुम्हे क्या मालूम नौकरी कितनी मुश्किलों से मिलती है और कितनी मुश्किलो से
निभती है, नौकरी पाना उतना मुश्किल नहीं जितना उसको निभाना। अप्रैल
में इम्तहान होनेवाला है, तीन-चार दिन स्कूल बन्द रहा तो बताओ कितने लड़के
पास होंगे? साल भर की सारी मेहनत पर पानी फिर जायगा कि नहीं? मेरा
कहना मानो, इस छुट्टी में न जाओ, इम्तहान के बाद जो छुट्टी पड़े उसमें चले
जाना। ईस्टर की चार दिन की छुट्टी होगी, मै एक दिन के लिए भी न रोकूँगा।
मैं अपने मोर्चे पर कायम रहा, समझाने-बुझाने, डराने-धमकाने और जवाब