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गुप्त धन
 


क्या रक्खा है। तुलिया तो इसलिए अपने नाम लिखा रही थी कि कहीं मैं उसके साथ बेवफ़ाई कर जाऊँ तो वह अनाथ न जाय। जब मैं उसका बिना कौड़ी का गुलाम हूँ तो बेवफाई कैसी? मैं उसके साथ बेबफाई करूँगा, जिसकी एक निगाह के लिए, एक शब्द के लिए तरसता रहता हूँ। कही उससे एक बार एकान्त मे भेट हो जाती तो उससे कह देता—तूला, मेरे पास जो कुछ है, वह सब तुम्हारा है। कहो बखशिशनामा लिख दूं, कहो बयनामा लिख दूं। मुझसे जो अपराध हुआ उसके लिए नादिम हूँ। जायदाद से मनुष्य को जो एक सस्कार-गत प्रेम है, उसी ने मेरे मुंह से वह शब्द निकलवाये। यही रिवाजी लोभ मेरे और तुम्हारे बीच में आकर खड़ा हो गया। पर अब मैने जाना कि दुनिया मे वही चीज़ सबसे कीमती है जिससे जीवन में आनन्द और अनुराग पैदा हो। अगर दरिद्रता और वैराग्य मे आनन्द मिले तो वही सबसे प्रिय वस्तु है, जिस पर आदमी जमीन और मिल्कियत सब कुछ होम कर देगा। आज भी लाखों माई के लाल है जो संसार के सुखों पर लात मारकर जंगलों और पहाड़ों की सैर करने में मस्त है। और उस वक्त मै इतनी मोटी-सी बात न समझा। हाय रे दुर्भाग्य!

एक दिन ठाकुर के पास तुलिया ने पैगाम भेजा—मै वीमार हूँ, आकर देख जाव, कौन जाने बचूं कि न बचूं।

इवर कई दिन से ठाकुर ने तुलिया को न देखा था। कई बार उसके द्वार के चक्कर भी लगाये, पर वह न दीख पड़ी। अब जो यह संदेशा मिला तो वह जैसे पहाड़ से नीचे गिर पडा। रात के दस बजे होगे। पूरी बात भी न सुनी और दौड़ा। छाती धड़क रही थी और सिर उड़ा जाता था। तुलिया बीमार है! क्या होगा भगवान! तुम मुझे क्यों नही बीमार कर देते? मैं तो उसके बदले मरने को भी तैयार हूँ। दोनो ओर के काले-काले वृक्ष मौत के दूतों की तरह दौड़े चले आते थे। रह-रहकर उसके प्राणों से एक ध्वनि निकलती थी, हसरत और दर्द मे डूबी हुई—तुलिया बीमार है!

उसकी तुलिया ने उसे बुलाया है। उस कृतघ्नी, अधम, नीच, हत्यारे को बुलाया है कि आकर मुझे देख जाओ, कौन जाने बचूं कि न बचूं। तू अगर न बचेगी तुलिया तो मैं भी न बचूंगा, हाय, न बचूंगा! दीवार से सिर फोड़कर मर जाऊँगा। फिर मेरी और तेरी चिता एक साथ बनेगी, दोनो के जनाजे एक साथ निकलेगे।