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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२४३

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देवी
२४९
 


उसने कदम और तेज किये। आज वह अपना सब कुछ तुलिया के कदमो पर रख देगा। तुलिया उसे बेवफा समझती है। आज वह दिखायेगा, वफा किसे कहते जीवन में अगर उसने वफा न की तो मरने के बाद करेगा। इस चार दिन की जिन्दगी में जो कुछ न कर सका वह अनन्त युगो तक करता रहेगा। उसका प्रेम कहानी बनकर घर-घर फैल जायगा।

मन में शका हुई, तुम अपने प्राणों का मोह छोड़ सकोगे? उसने जोर से छाती पीटी और चिल्ला उठा—प्राणो का मोह किसके लिए? और प्राण भी तो वही है, जो बीमार है। देखू मौत कैसे प्राण ले जाती है, और देह को छोड़ देती है।

उसने धड़कते हुए दिल और थरथराते हुए पॉवो से तुलिया के घर मे कदम रक्खा। तुलिया अपनी खाट पर एक चादर ओढे सिमटी पड़ी थी, और लालटेन के अन्धे प्रकाश में उसका पीला मुख मानों मौत की गोद मे विश्राम कर रहा था।

उसने उसके चरणों पर सिर रख दिया और ऑसुओ में डूबी हुई आवाज से बोला—तूला, यह अभागा तुम्हारे चरणो पर पड़ा हुआ है। क्या आँखे न खोलोगी?

तुलिया ने आँखें खोल दी और उसकी ओर करुण दृष्टि डालकर कराहती हुई बोली—तुम हो गिरधर सिंह, तुम आ गये? अब मैं आराम से मरूगी। तुम्हें एक बार देखने के लिए जी बहुत बेचैन था। मेरा कहा-सुना माफ कर देना और मेरे लिए रोना मत। इस मिट्टी की देह मे क्या रक्खा है गिरधर! वह तो मिट्टी में मिल जायगी। लेकिन मैं कभी तुम्हारा साथ न छोडूंगी। परछाई की तरह नित्य तुम्हारे साथ रहूँगी। तुम मुझे देख न सकोगे, मेरी बाते सुन न सकोगे, लेकिन तुलिया आठों पहर सोते-जागते तुम्हारे साथ रहेगी। मेरे लिए अपने को बदनाम मत करना गिर- घर! कभी किसी के सामने मेरा नाम जबान पर न लाना। हॉ, एक बार मेरी चिता पर पानी के छीटे मार देना। इससे मेरे हृदय की ज्वाला शान्त हो जायगी।

गिरधर फूट-फूटकर रो रहा था। हाथ मे कटार होती तो इस वक्त जिगर में मार लेता और उसके सामने तड़पकर मर जाता।

जरा दम लेकर तुलिया ने फिर कहा—मैं बचूंगी नही गिरधर, तुमसे एक बिनती करती हूँ, मानोगे?

गिरधर ने छाती ठोंककर कहा—मेरी लाश भी तेरे साथ ही निकलेगी तुलिया। अब जीकर क्या करूँगा और जिऊँ भी तो कैसे? तू मेरा प्राण है तुलिया।

उसे ऐसा मालूम हुआ तुलिया मुस्करायी।