में आराम से बैठता और अगर पहले दर्जे मे बैठना था तो इतनी ही उदारता से दोनों के लिए खुद पहले दर्जे का टिकट लाता, लेकिन अभी तो मेरी क्रियाशक्ति लुप्त हो गयी थी।
२ जनवरी—मै हैरान हूँ हेलेन को मुझसे इतनी हमदर्दी क्यो है, और यह सिर्फ दोस्ताना हमदर्दी नहीं है। इसमें मुहब्बत की सच्चाई है। दया मे तो इतना आतिथ्य-सत्कार नही हुआ करता, और रही मेरे गुणो की स्वीकृति, तो मैं अक्ल से इतना खाली नही हूँ कि इस धोखे में पडूं! गुणो की स्वीकृति ज्यादा से ज्यादा एक सिगरेट और एक प्याली चाय पा सकती है। यह सेवा-सत्कार तो मैं वही पाता हूँ जहाँ किसी मैच मे खेलने के लिए मुझे बुलाया जाता है। तो भी वहाँ भी इतने हार्दिक ढग से मेरा सत्कार नहीं होता, सिर्फ रस्मी खातिरदारी बरती जाती है। उसने जैसे मेरी सुबिधा और मेरे आराम के लिए अपने को समर्पित कर दिया हो। मैं तो शायद अपनी प्रेमिका के सिवा और किसी के साथ इस हार्दिकता का बर्ताव न कर सकता। याद रहे, मैने प्रेमिका कहा है पत्नी नहीं कहा। पत्नी को हम खातिरदारी नहीं करते, उससे तो खातिरदारी करवाना ही हमारा स्वभाव हो गया है और शायद सच्चाई भी यही है। मगर फ़िलहाल तो मैं इन दोनो नेमतों में से एक का भी हाल नहीं जानता। उसके नाश्ते, डिनर, लच मे तो मैं शरीक था ही, हर स्टेशन पर (वह डाक थी और खास-खास स्टेशनो पर ही रुकती थी) मेवे और फल मंगवाती और मुझे आग्रहपूर्वक खिलाती। कहाँ की क्या चीज़ मशहूर है इसका उसे खूब पता है। मेरे दोस्तों और घरवालों के लिए तरह-तरह के तोहफ़ खरीदे मगर हैरत यह है कि मैने एक बार भी उसे मना न किया। मना क्योंकर करता, मुझसे पूछकर तो लाती नहीं। जब वह एक चीज लाकर मुहब्बत के साथ मुझे भेंट करती है तो मैं कैसे इन्कार करूँ। खुदा जाने क्यो मै मर्द होकर भी उसके सामने औरत की तरह शर्मीला, कम बोलनेवाला हो जाता हूँ कि जैसे मेरे मुंह में जाबान ही नहीं। दिन की थकान की वजह से रात भर मुझे बेचैनी रही। सर में हल्का-सा दर्द था मगर मैंने इस दर्द को बढाकर कहा। अकेला होता तो शायद इस दर्द को जरा भी परवाह न करता मगर आज उसकी मौजूदगी में मुझे उस दर्द को जाहिर करने में मजा आ रहा था। वह मेरे सर में तेल की मालिश करने लगी और मै खामखाह निढाल हुआ जाता था। मेरी बेचैनी के साथ उसकी परीशानी