लेकिन हेलेन को न मालूम क्यों औरतों से आपत्ति है। उनकी संगत से भागती है, खासकर सुन्दर औरतों की छाया से भी दूर रहती है हालाँकि उसे किसी सुन्दरी से जलने का कोई कारण नहीं है। यह मानते हुए भी कि हुस्न उस पर खत्म नहीं हो गया है, उसमे आकर्षण के ऐसे तत्व मौजूद है कि कोई परी भी उसके मुकाबले में नहीं खड़ी हो सकती। नख-शिख ही तो सब कुछ नहीं है। रुचि का सौन्दर्य,बातचीत का सौन्दर्य, अदाओं का सौन्दर्य भी तो कोई चीज़ है। प्रेम उसके दिल में है या नहीं खुदा जाने लेकिन प्रेम के प्रदर्शन में वह बेजोड़ है। दिलजोई और नाजबरदारी के फन मे हम जैसे दिलदारों को भी उससे शर्मिन्दा होना पड़ता है। शाम को हम लोग नयी दिल्ली की सैर को गये। दिलकश जगह है, खुली हुई सडके, जमीन के खूबसूरत टुकड़े, सुहानी रविशे। उसको बनाने में सरकार ने बेदरेग रुपया खर्च किया है और बेज़रूरत। यह रकम रिआया की भलाई पर खर्च की जा सकती थी मगर इसको क्या कीजिए कि जनसाधारण इसके निर्माण से जितने प्रभावित है उतने अपनी भलाई की किसी योजना से न होते। आप दस-पाँच मदरसे ज्यादा खोल देते या सड़कों की मरम्मत मे या, खेती की जांच पड़ताल में इस रुपये को खर्च कर देते मगर जनता को शान-शौकत, धन-वैभव से आज भी जितना प्रेम है उतना आपके रचनात्मक कामो से नहीं है। बादशाह की जो कल्पना उसके रोम-रोम में घुल गयी है वह अभी सदियो तक न मिटेगी। बादशाह के लिए शान-शौकत जरूरी है। पानी की तरह रुपया बहाना जरूरी है। किफ़ायतशार या कजूस बादशाह चाहे वह एक-एक पैसा प्रजा की भलाई के लिए खर्च करे, इतना लोकप्रिय नहीं हो सकता। अग्रेज़ मनोविज्ञान के पडित है। अग्रेज ही क्यों हर एक बादशाह जिसने अपने बाहुबल और अपनी बुद्धि से यह स्थान प्राप्त किया है स्वभावतः मनोविज्ञान का पडित होता है। इसके बगैर जनता पर उसे अधिकार क्योंकर प्राप्त होता। खैर, यह तो मैने यूंही कहा। मुझे ऐसा अदेशा हो रहा है कि शायद हमारी टीम सपना ही रह जाये।अभी से हम लोगों में अनबन रहने लगी है। बृजेन्द्र कदम-कदम पर मेरा विरोध करता है। मै आम कहूँ तो वह अदबदाकर इमली कहेगा और हेलेन को उससे प्रेम है। जिन्दगी के कैसे-कैसे मीठे सपने देखने लगा था मगर बृजेन्द्र, कृतघ्न स्वार्थी बृजेन्द्र मेरी जिन्दगी तबाह किये डालता है। हम दोनों के प्रिय पात्र नहीं रह सकते, यह तय बात है; एक को मैदान से हटना पड़ेगा।
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