पहुँची कि दूध सिर्फ नाम का दूध रह गया। कितना ही उबालो न कही मलाई का पता न मिठास। पहले तो शिकायत कर लिया करता था, इससे दिल का बुखार निकल जाता था। शिकायत से सुधार न होता तो दूध बन्द कर देता था। अब तो शिकायत का भी मौका न था, बन्द कर देने का जिक्र ही क्या। भिखारी का गुस्सा अपनी जान पर, पियो या नाले में डाल दो। आठ आने रोज का नुस्खा किस्मत में लिखा हुआ । बच्चा दूध को मुंह न लगाता, पीना तो दूर रहा। आपो आध शक्कर डालकर कुछ दिनो दूध पिलाया तो फोडे निकलने शुरू हुए और मेरे घर मे रोज बमचख मची रहती थी। बीवी नौकर से फ़रमाती दूध ले जाकर उन्हीं के सर पटक आ। मै नौकर को मना करता। वह कहती अच्छे दोस्त है तुम्हारे,उसे शरम भी नहीं आती। क्या इतना अहमक है कि इतना भी नहीं समझत' कि यह लोग दूध देखकर क्या कहेगे! गाय को अपने घर मॅगवा लो,बला से बदबू आयगी, मच्छर होगे, दूध तो अच्छा मिलेगा। रुपये खर्चे हैं तो उसका मजा तो मिलेगा।
चड्ढा साहब मेरे पुराने मेहरबान है। खासी बेतकल्लुफी है उनसे। यह हरकत उनकी जानकारी में होती हो यह बात किसी तरह गले के नीचे नही उतरती। या तो उनकी बीवी की शरारत है या नौकर की लेकिन जिक्र कैसे करूँ और फिर उनकी बीवी से भी तो राह-रस्म है। कई बार मेरे घर आ चुकी है। मेरी बीवी जी भी उनके यहाँ कई बार मेहमान जा चुकी है। क्या वह यकायक इतनी बेवकूफ हो जायेगी, सरीहन ऑखो में धूल झोंकेगी! और फिर चाहे किसी की शरारत हो, मेरे लिए यह गैरमुमकिन था कि उनसे दूध की खराबी की शिकायत करता। खैरियत यह हुई कि तीसरे महीने चड्ढा का तबादला हो गया। मैं अकेले गाय रख न सकता था। साझा टूट गया। गाय आधे दामी बेच दी गयी। मैंने उस दिन इत्मीनान की सांस ली।
आखिर यह सलाह हुई कि एक बकरी रख ली जाय। बह बीच ऑगन के एक कोने मे पड़ी रह सकती है। उसे दुहने के लिए न ग्वाले की जरूरत न उसका गोबर उठाने, माँद धोने, चारा-भूसा डालने के लिए किसी महीरिन की जरूरत। बकरी तो मेरा नौकर भी आसानी से दुह लेगा। थोड़ी-सी चोकर डाल दी,चलिये किस्सा तमाम हुआ। फिर बकरी का दूध फायदेमन्द भी ज्यादा है, बच्चों के लिए खास तौर पर । जल्दी हजम होता है, न गर्मी करे न सर्दी, स्वास्थ्यवर्द्धक है। संयोग से मेरे यहाँ जोपडित जी मेरे मसौदे नकल करने आया करते थे,इन मामलों
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