तब तो एक तरह से अपने गाँव ही में हूँगा, उसका क्या शुमार! हिम्मत बँध गयी। इक्के-दुक्के मुसाफिर भी पीछे चले आ रहे थे। और भी इत्मीनान हुआ।
अँधेरा हो गया है। मै लपका जा रहा है। सड़क के किनारे दूर से एक झोपड़ी नजर आती है। एक कुप्पी जल रही है। जरूर किसी बनिये की दुकान होगी। और कुछ न होगा तो गुड और चने तो मिल ही जायेंगे। कदम और तेज करता हूँ। झोपडी आती है। उसके सामने एक क्षण के लिए खडा हो जाता हूँ। चार- पाँच आदमी उकडू बैठे हुए है, बीच मे एक बोतल है, हर एक के सामने एक-एक कुल्हड। दीवार से मिली हुई ऊँची गद्दी है, उस पर साहजी बैठे हुए हैं, उनके सामने कई बोतले रखी हुई है। जरा और पीछे हटकर एक आदमी कडाही मे सूखे मटर भून रहा है। उसकी सोधी खुशबू मेरे शरीर मे बिजली की तरह दौड़ जाती है। बेचैन होकर जेब में हाथ डालता हूँ और एक पैसा निकालकर उसकी तरफ चलता हूँ लेकिन पॉव आप ही आप रुक जाते है—यह कलवरिया है।
खोचेवाला पूछता है—क्या लोगे?
मैं कहता हूँ—कुछ नहीं।
और आगे बढ़ जाता हूँ। दुकान भी मिली तो शराब की, गोया दुनिया में इन्सान के लिए शराब ही सबसे जरूरी चीज़ है । यह सब आदमी धोबी और चमार होगे, दूसरा कौन शराब पीता है, देहात में। मगर वह मटर का आकर्षक सोधापन मेरा पीछा कर रहा है और मै भागा जा रहा हूँ।
किताबो की पोटली जी का जजाल हो गयी है, ऐसी इच्छा होती है कि इसे यही सडक पर पटक दूं। उसका वजन मुश्किल से पाँच सेर होगा, मगर इस वक्त वह मुझे मन भर से ज्यादा मालूम हो रही है। शरीर मे कमजोरी महसूस हो रही है। पूरनमासी का चाँद पेड़ों के ऊपर जा बैठा है और पत्तियों के बीच से जमीन की तरफ झॉक रहा है। मैं बिलकुल अकेला चला जा रहा हूँ मगर दर्द बिलकुल नहीं है, भूख ने सारी चेतना को दबा रखा है और खुद उन पर हावी हो गयी है।
आहा हा, यह गुड की खुशबू कहाँ से आयी! कही ताजा गुड पक रहा है। कोई गॉव करीब ही होगा। हॉ, वह आमो के झुरमुट मे रोशनी नजर आ रही है। लेकिन वहाँ पैसे-दो पैसे का गुड़ कौन बेचेगा और यो मुझसे माँगा न जायगा, मालूम नही लोग क्या समझे। आगे बढ़ता हूँ, मगर जबान से राल टपक रही है। गुड़ से मुझे बडा प्रेम है। जब कभी किसी चीज की दुकान खोलने की