पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कोई दुख न हो तो बकरी खरीद लो
२८१
 


याद नही, क्या हुआ। मुझे जब होश आया तो मैं अपने दरवाजे पर पसीने मे तर खडा था गोया मिरगी के दौरे के वाद उठा हूँ। इस बीच मेरी आत्मा पर उपचेतना का आधिपत्य था और वकरी की वह घृणित आवाज, वह कर्कश आवाज, वह हिम्मत तोड़नेवाली आवाज, वह दुनिया की सारी मुसीबतो का खुलासा, वह दुनिया की सारी लानतो की रूह कानों में चुभी जा रही थी।

बीवी ने पूछा—आज कहाँ चले गये थे? इस चुडैल को जरा बाग भी न ले गये, जीना मुहाल किये देती है। घर से निकलकर कहाँ चली जाऊँ!

मैने इत्मीनान दिलाया—आज चिल्ला लेने दो, कल सबसे पहला यह काम करूँगा कि इसे घर से निकाल बाहर करूँगा, चाहे कसाई को देना पड़े।

'और लोग न जाने कैसे बकरियों पालते है।'

'बकरी पालने के लिए कुत्ते का दिमाग चाहिए।'

सुबह को बिस्तर से उठकर इसी फिक्र मे बैठा था कि इस काली बला से क्योंकर मुक्ति मिले कि सहसा एक गड़रिया बकरियो का एक गल्ला चराता हुआ आ निकला। मैंने उसे पुकारा और उससे अपनी बकरी को चराने की बात कही। गडरिया राजी हो गया। यही उसका काम था। मैंने पूछा—क्या लोगे?

'आठ आने बकरी मिलते है हजूर।'

'मैं एक रुपया दूंगा लेकिन बकरी कभी मेरे सामने न आवे।'

गड़रिया हैरत मे रह गया—मरकही है क्या बाबूजी?

'नहीं, नहीं, बहुत सीधी है, बकरी क्या मारेगी, लेकिन मै उसकी सूरत नहीं देखनी चाहता।'

'अभी लो दूध देती है।

'हॉ, सेर-सवा सेर दूध देती है।'

'दूध आपके घर पहुँच जाया करेगा।'

'तुम्हारी मेहरबानी।'

जिस वक्त बकरी घर से निकली है मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे घर का पाप निकला जा रहा है। बकरी भी खुश थी गोया कैद से छूटी है। गड़रिये ने उसी वक्त दूध निकाला और घर में रखकर बकरी को लिये चला गया। ऐसा बेगरज गाहक उसे जिन्दगी में शायद पहली ही बार मिला होगा।

एक हफ्ते तक तो दूध थोड़ा-बहुत आता रहा फिर उसकी मात्रा कम होने लगी यहाँ तक कि एक महीना खतम होते-होते दूध बिलकुल बन्द हो गया। मालूम