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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२७७

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कोई दुख न हो तो बकरी खरीद लो
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उस दिन से न वह गड़रिया नजर आया और न वह बकरी,और न मैंने पता लगाने की कोशिश की। लेकिन देवीजी उसके बच्चों को याद करके कभी-कभी आँसू वहां लेती है।

—'बारदात' से