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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/३५

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होली को छुट्टी
३९
 

वह बोला—'हाँ, दो घण्टे रोजाना कसरत करता हूँ। मुगदर और लेजिम का मुझे बहुत शौक है। मेरा पचासवां साल है, मगर एक साँस में पांच मील दौड़ सकता हूँ। कसरत न करूँ तो इस जगल में रहूँ कैसे। मैंने खूब कुश्तियाँ लड़ी है। अपनी रेजीमेण्ट में खूब मजबूत आदमी था। मगर अब इस फौजी जिन्दगी की हालतों पर गौर करता हूँ तो शर्म और अफसोस से मेरा सर झुक जाता है। कितने ही बेगुनाह मेरी राइफल के शिकार हुए। मेरा उन्होंने क्या नुकसान किया था? मेरी उनसे कौन-सी अदावत थी? मुझे तो जर्मन और आस्ट्रियन सिपाही भी वैसे ही सच्चे, वैसे ही बहादुर, वैसे ही खुशमिजाज, वैसे ही हमदर्द मालूम हुए जैसे फ्रांस या इंगलैण्ड के। हमारी उनसे खूब दोस्ती हो गयी थी, साथ खेलते थे, साथ बैठते थे, यह खयाल ही न आता था कि यह लोग हमारे अपने नहीं है। मगर फिर भी हम एक दूसरे के खून के प्यासे थे। किसलिए? इसीलिए कि बडे-बड़े अंग्रेज सौदागरों को खतरा था कि कहीं जर्मनी उनका रोजगार न छीन ले। यह सौदागरों का राज है। हमारी फौजें उन्हीं के इशारों पर नाचनेवाली कठपुतलियाँ है। जान हम गरीबों की गयी, जेबें गर्म हुई मोटे-मोटे सौदागरों की। उस वक़्त हमारी ऐसी खातिर होती थी, ऐसी पीठ ठोंकी जाती थी, गोया हम सल्तनत के दामाद है। हमारे ऊपर फूलों की बारिश होती थी, हमें गार्डन पार्टियाँ दी जाती थीं, हमारी बहादुरी की कहानियाँ रोजाना अखबारों में तस्वीरों के साथ छपती थीं। नाजुकबदन लेडियाँ और शहज़ादियाँ हमारे लिए कपड़े सीती थीं, तरह-तरह के मुरब्बे और अचार बना-बनाकर भेजती थीं। लेकिन जब सुलह हो गयी तो उन्हीं जाँबाजियों को कोई टके को भी न पूछता था। कितनों ही के अंग-भंग हो गये थे, कोई लूला गया था, कोई लँगड़ा, कोई अधा। उन्हें एक टुकड़ा रोटी भी देनेवाला कोई न था। मैंने कितनों ही को सड़क पर भीख मांगते देखा। तब से मुझे इस पेशे से नफरत हो गयी। मैंने यहाँ आकर यह काम अपने जिम्मे ले लिया और खुश हूँ। सिपहगिरी इसलिए है कि उससे गरीबों की जान-माल की हिफाजत हो, इसलिए नहीं कि करोड़पतियों की बेशुमार दौलत और बढ़े। यहाँ मेरी जान हमेशा खतरे मे रहती है। कई बार मरते-मरते बचा हूँ लेकिन इस काम में मर भी जाऊँ तो मुझे अफ़सोस न होगा, क्योंकि मुझे यह तस्कीन होगा कि मेरी जिन्दगी गरीबों के काम आयी। और यह बेचारे किसान मेरी कितनी खातिर करते हैं कि तुमसे क्या कहूँ। अगर मैं बीमार पड़ जाऊँ और उन्हें मालूम हो जाय कि मैं उनके शरीर के ताजे खून से अच्छा हो जाऊँगा तो बिना