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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/३८

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गुप्त धन
 

अब उनकी गर्दन बाहर निकल आयी तो जोर से हँसकर बोले—लो अब पहुँच गये।

मैंने कहा—आपको आज मेरी वजह से बड़ी तकलीफ़ हुई।

जैक्सन ने मुझे हाथों से उतारकर फिर कधे पर बिठाते हुए कहा—और मुझे आज जितनी खुशी हुई उतनी आज तक कभी न हुई थी, जर्मन कप्तान को क़त्ल करके भी। अपनी माँ से कहना मुझे दुआ दें।

घाट पर पहुँचकर मैं साहब से रुखसत हुआ, उसकी सज्जनता, निस्वार्थ सेवा, और अदम्य साहस का न मिटनेवाला असर दिल पर लिये हुए। मेरे जी में आया, काश मैं भी इसी तरह लोगों के काम आ सकता।

तीन बजे रात को जब मैं घर पहुंचा तो होली मे आग लग रही थी। मै स्टेशन से दो मील सरपट दौड़ता हुआ गया। मालूम नही भूखे शरीर में इतनी ताकत कहाँ से आ गयी थी।

अम्माँ मेरी आवाज सुनते ही आँगन में निकल आयीं और मुझे छाती से लगा लिया और बोली—इतनी रात कहाँ कर दी, मैं तो साँझ से तुम्हारी राह देख रही थी, चलो खाना खा लो, कुछ खाया-पिया है कि नहीं?

वह अब स्वर्ग में है। लेकिन उनका वह मुहब्बत-भरा चेहरा मेरी आँखों के सामने है और वह प्यारभरी आवाज कानों में गूंज रही है।

मिस्टर जैक्सन से कई बार मिल चुका हूँ। उसकी सज्जनता ने मुझे उसका भक्त बना दिया है। मै उसे इन्सान नही फ़रिश्ता समझता हूँ।

—'जादे राह' से