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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/४१

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नादान दोस्त
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श्यामा दोनों हाथो से स्टूल पकड़े हुए थी। स्टूल चारों टाँगें बराबर न होने के कारण जिस तरफ ज्यादा दबाव पाला था, जरा-सा हिल जाता था। उस वक्त केशव को कितनी तकलीफ उठानी पडती थी यह उसी का दिल जानता था। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज से डॉटता—अच्छी तरह पकड, वर्ना उतरकर बहुत मारूंगा। मगर बेचारी श्यामा का दिल तो ऊपर कार्निस पर था। बार-बार उसका ध्यान उधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते।

केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों चिड़ियाँ उड़ गयीं। केशव ने देखा, कार्निस पर थोडे तिनके बिछे हुए है, और उस पर तीन अण्डे पडे है। जैसे घोंसले उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा—के बच्चे है भइया?

केशव—तीन अण्डे है, अभी बच्चे नही निकले।

श्यामा—जरा हमें दिखा दो भइया, कितने बड़े है?

केशव—दिखा दूंगा, पहले जरा चिथडे ले आ, नीचे विछा दूं। बेचारे अडे तिनकों पर पड़े हैं।

श्यामा दौड़कर अपनी पुरानी धोती फाड़कर एक टुकड़ा लायी। केशव ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसके कई तह करके उसने एक गद्दी बनायी और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनो अण्डे धीरे से उस पर रख दिये।

श्यामा ने फिर कहा—हमको भी दिखा दो भइया।

केशव—दिखा दूंगा, पहले जरा वह टोकरी तो दे दो, ऊपर छाया कर दूं।

श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली—अब तुम उतर आओ, मैं भी तो देखू।

केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा—जा, दाना और पानी की प्याली ले आ, मैं उतर आऊँ तो तुझे दिखा दूंगा।

श्यामा प्याली और चावल भी लायी। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दी और आहिस्ता से उतर आया।

श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा—अब हमको भी चढ़ा दो भइया।

केशव—तू गिर पड़ेगी।

श्यामा न गिरूँगी भइया, तुम नीचे से पकड़े रहना।

केशव—न भइया, कहीं तू गिर-गिरा पड़े तो अम्मा जी मेरी चटनी ही कर