अण्डे नीचे टूटे पड़े हैं और उनसे कोई चूने की-सी चीज़ बाहर निकल आयी है। पानी की प्याली भी एक तरफ़ टूटी पड़ी है।
उसके चेहरे का रंग उड़ गया। सहमी हुई आँखों से जमीन की तरफ देखने लगा।
श्यामा ने पूछा—बच्चे कहाँ उड़ गये भइया?
केशव ने करुण स्वर मे कहा—अण्डे तो फूट गये।
'और बच्चे कहाँ गये?'
केशव—तेरे सर में। देखती नहीं है अण्डों में से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही तो दो-चार दिन में बच्चे बन जाते।
माँ ने सोटी हाथ मे लिये हुए पूछा—तुम दोनों वहाँ धूप मे क्या कर रहे हो?
श्यामा ने कहा—अम्माँ जी, चिड़िया के अण्डे टूटे पड़े है।
मों ने आकर टूटे हुए अण्डों को देखा और गुस्से से बोली—तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा।
अब तो श्यामा को भइया पर जरा भी तरस न आया। उसी ने शायद अण्डों को इस तरह रख दिया कि वह नीचे गिर पड़े। इसकी उसे सजा मिलनी चाहिए। बोली—इन्होने अण्डों को छेड़ा था अम्मा जी।
माँ ने केशव से पूछा—क्यों रे?
केशव भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा।
माँ—तू वहाँ पहुँचा कैसे?
श्यामा—चौके पर स्टूल रखकर चढ़े अम्मॉजी।
केशव—तू स्टूल थामे नहीं खड़ी थी?
श्यामा—तुम्ही ने तो कहा था!
मां—तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अण्डे गन्दे हो जाते हैं। चिड़िया फिर उन्हे नहीं सेती।
श्यामा ने डरते-डरते पूछा—तो क्या चिड़िया ने अण्डे गिरा दिये है, अम्माँ जी?
मा—और क्या करती। केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा। हाय, हाय, तीन जाने ले ली दुष्ट ने!
केशव रोनी सूरत बनाकर बोला—मैने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था, अम्माँ जी!