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दरवाजा खोलकर भागा। उसका साथी भी उसके पीछे-पीछे भागा। चलते- चलते छुरीवाले आदमी ने उसे इतने जोर से धक्का दिया कि वह मुंह के बल गिर पड़ा। फिर तो उसने इतनी ठोकरे, इतनी लाते और इतने धूसे जमाये कि उसके मुंह से खून निकल पड़ा। इतने मे गाडी रुक गयी और गार्ड लालटेन लिये आता दिखाई दिया।

मगर वह दोनो शैतान गाडी को रुकते देखकर बेतहाशा नीचे कूद पड़े और उस अंधेरे मे न जाने कहाँ खो गये। गार्ड ने भी ज्यादा छानबीन न की और करता भी तो उस अँधेरे में पता लगना मुश्किल था। दोनो तरफ खड्ड थे, शायद गाड़ी किसी नदी के पास थी। वहाँ दो क्या दो सौ आदमी उस वक्त बडी आसानी से छिप सकते थे। दस मिनट तक गाडी खडी रही, फिर चल पडी।

माया ने मुक्ति की सॉस लेकर कहा—आप आज न होते तो ईश्वर ही जाने मेरा क्या हाल होता। आपके कही चोट तो नही आयो?

उस आदमी ने छुरे को जेब में रखते हुए कहा—बिलकुल नहीं। मै ऐसा बेसुध सोया हुआ था कि उन बदमाशो के आने की खबर ही न हुई। बर्ना मैंने उन्हे अन्दर पॉव ही न रखने दिया होता। अगले स्टेशन पर रिपोर्ट करूंगा।

माया—जी नहीं, खामखाह की बदनामी और परेशानी होगी। रिपोर्ट करने से कोई फायदा नहीं। ईश्वर ने आज मेरी आबरू रख ली। मेरा कलेजा अभी तक धड़-घड कर रहा है। आप कहाँ तक चलेगे?

'मुझे शाहजहाँपुर जाना है।

'वही तक तो मुझे भी जाना है। शुभ नाम क्या है? कम से कम अपने उपकारक के नाम से तो अपरिचित न रहूँ।'

'मुझे तो ईश्वरदास कहते है।

माया का कलेजा धक् से हो गया। जरूर यह वही खूनी है, इसकी शक्ल-सूरत भी वही है जो उसे बतलायी गयी थी। उसने डरते-डरते पूछा—आपका मकान किस मुहल्ले मे है?

...मे रहता हूँ।

माया का दिल बैठ गया। उसने खिड़की से सिर बाहर निकालकर एक लम्बी सॉस ली। हाय! खूनी मिला भी तो ऐसी हालत में जब वह उसके