कभी अपने हाथ से चौका-बर्तन करने का संयोग न हुआ था। बार-बार अपनी हालत पर रोना आता था। एक दिन वह था कि उसके घर में नौकरों की एक पलटन थी, आज उसे अपने हाथों बर्तन मॉजने पड़ रहे हैं। तिलोतमा दौड़-दौड़ कर बड़े जोश से काम कर रही थी। उसे कोई फ़िक्र न थी। आपने हाथों से काम करने का, अपने को उपयोगी साबित करने का ऐसा अच्छा मौका पाकर उसकी खुशी की कोई सीमा न रही। इतने में ईश्वरदास आकर खडा हो गया और माया को बर्तन मांजते देखकर बोला—यह आप क्या कर रही है? रहने दीजिए, मैं अभी एक आदमी को बुलाये लाता हूँ। आपने मुझे क्यों न खबर दी, राम राम, उठ आइए बहाँ से।
माया ने लापरवाही से कहा—कोई जरूरत नहीं। आप तकलीफ न कीजिए। मैं अभी मांजे लेती हूँ।
'इसकी जरूरत भी क्या, मैं एक मिनट में आता हूँ।'
'नहीं, आप किसी को न लाइए, मैं इतने बर्तन बड़ी आसानी से धो लूंगी।'
'अच्छा तो लाइए मैं भी आपकी कुछ मदद करूं।'
यह कहकर उसने डोल उठा लिया और बाहर से पानी लेने दौड़ा। पानी लाकर उसने मंजे बर्तनों को धोना शुरू किया।
माया ने उसके हाथ से बर्तन छीनने की कोशिश करके कहा—आप मुझे क्यों शर्मिन्दा करते है? रहने दीजिए, मैं अभी साफ किये डालती हूँ।
'आप मुझे शर्मिन्दा करती है या मैं आपको शर्मिन्दा कर रहा हूँ? आप यहाँ मुसाफिर है, मैं यहाँ का रहनेवाला हूँ, मेरा धर्म है कि आपकी सेवा करूं। आपने एक ज्यादती तो यह की कि मुझे जरा भी खबर न दी, अब दूसरी ज्यादती यह कर रही है। मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।'
ईश्वरदास ने जरा देर में सारे बर्तन साफ़ करके रख दिये। ऐसा मालूम होता था कि वह ऐसे कामों का आदी है। बर्तन धोकर उसने सारे बर्तन पानी से भर दिये और तब माथे से पसीना पोंछता हुआ बोला—बाजार से कोई चीज लानी हो तो बतला दीजिए, अभी ला दूं।
माया—जी नहीं, माफ कीजिए, आप अपने घर का रास्ता लीजिए।
ईश्वरदास—तिलोत्तमा, आओ आज तुम्हें सैर करा लायें।
माया—जी नही, रहने दीजिए। वह इस वक्त सैर करने नहीं जाती।
माया ने यह शब्द इतने रूखेपन से कहे कि ईश्वरदास का मुंह उतर गया।