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गुप्त धन
 


माया के हाथ से खंजर गिर पड़ा। उसकी आँखों में आँसू भर आये, बोली—मुझे न मालूम था कि वे ऐसी हरकते भी कर सकते है।

ईश्वरदास ने कहा—यह न समझिए कि मै आपकी तलवार से डरकर वकील साहब पर झूठे इल्जाम लगा रहा हूॅ। मैंने कभी जिन्दगी की परवाह नहीं की। मेरे लिए कौन रोनेवाला बैठा हुआ है जिसके लिए जिन्दगी की परवाह करूँ। अगर आप समझती है कि मैने अनुचित हत्या की है तो आप इस तलवार को उठाकर इस ज़िन्दगी का खात्मा कर दीजिए, मै ज़रा भी न झिझकूँगा। अगर आप तलवार न उठा सके तो पुलिस को खबर कर दीजिए वह बड़ी आसानी से मुझे दुनिया से रुखसत कर सकती है। सबूत मिल जाना मुश्किल न होगा। मैं खुद पुलिस के सामने अपने जुर्म का इकबाल कर लेता मगर मैं इसे जुर्म नहीं समझता। अगर एक जान के जाने से सैकडों जाने बच जायें तो वह खून नहीं है। मैं सिर्फ इसलिए जिन्दा रहना चाहता हूॅ कि शायद किसी ऐसे ही मौके पर मेरी फिर ज़रूरत पड़े।

माया ने रोते हुए कहा—अगर तुम्हारा बयान सही है तो मैं अपना खून माफ करती हूँ। तुमने जा किया या बेजा किया इसका फैसला ईश्वर करेंगे। तुमसे मेरी प्रार्थना है कि मेरे पति के हाथो जो घर तबाह हुए है उनका मुझे पता बतला दो, शायद मै उनकी कुछ सेवा कर सकूँ।

—'प्रेमचालीसी' से