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बड़े बाबू
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आते ही आदमी बिलकुल जानवर बन जाता है। बोलिए, आप इसे मंजूर कर सकते हैं? हरगिज़ नहीं।

मैने डरते-डरते कहा--जनाब, ज़रा इन लफ्जो को खोलकर समझा दीजिए। आदमी के जानवर बन जाने से आपका क्या मशा है?

बडे बाबू ने त्योरी चढाते हुए कहा--यह तो कोई पेचीदा बात न थी जिसका मतलब खोलकर बतलाने की जरूरत हो। तब तो मुझे बात करने के अपने ढग मे कुछ तरमीम करनी पडेगी। इस दायरे के उम्मीदवारों के लिए सबसे ज़रूरी और लाजिमी सिफत, सूझ-बूझ है। मैं नहीं कह सकता कि मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, वह इस लफ्ज से अदा होता है या नहीं। इसका अंग्रेज़ी लफ्ज़ है इनटुइशन--इशारे के असली मतलब को समझना। मसलन अगर सरकार बहादुर यानी हाकिम जिला को शिकायत हो कि आपके इलाके में इनकमटैक्स कम वसूल होता है तो आपका फर्ज है कि उसमे अधाधुन्ध इज़ाफा करे। आमदनी की परवाह न करे। आमदनी का बढाना आपकी सूझ-बूझ पर मुनहसर है। एक हल्की-सी धमकी काम कर जायगी और इनकमटैक्स दुगुना-तिगुना हो जायगा। यकीनन आपको इस तरह अपना जमीर (अन्त करण) बेचना गवारा न होगा।

मैंने समझ लिया कि मेरा इम्तहान हो रहा है, आशिको जैसे जोश और सरगर्मी से बोला--मै तो इसे जमीर बेचना नहीं समझता, यह तो नमक का हक है। मेरा जमीर इतना नाजुक नहीं है।

बडे बाबू ने मेरी तरफ कद्रदानी की निगाह से देख कर कहा--शाबाश! मुझे तुमसे ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी। आप मुझे होनहार मालूम होते है। लेकिन शायद यह दूसरी शर्त आपको मजूर न हो। इस दायरे के मुरीदों के लिए दूसरी शर्त यह है कि वह अपने को भूल जायँ। कुछ आया आपकी समझ मे?

मैंने दबी जबान मे कहा--जनाब को तकलीफ़ तो होगी मगर जरा फिर इसको खोलकर बतला दीजिए।

बडे बाबू ने त्योरियो पर बल देते हुए कहा--जनाब, यह बार-बार का समझाना मुझे बुरा मालूम होता है। मैं इससे ज्यादा आसान तरीक़े पर अपने खयालो को ज़ाहिर नहीं कर सकता। अपने को भूल जाना बहुत ही आम मुहावरा है। अपनी खुदी को मिटा देना, अपनी शख्सियत को फ़ना कर देना, अपनी पर्सनालिटी को खत्म कर देना। आपकी वजा-कता से, आपके बोलने बात करने के ढग से, आपके तौर-तरीकों से आपको हिन्दियत मिट जानी चाहिए। आपके मजहबी, अखलाकी और