'मजूर।'
'तो बिस्मिल्लाह, कल से आपका नाम उम्मीदवारो की फेहरिस्त मे लिख दिया जायगा।'
मैने सोचा था कल से कोई जगह मिल जायगी। इतनी जिल्लत कबूल करने के बाद रोजी की फिक्र से तो आजाद हो जाऊँगा। अब यह हकीकत खुली। बरबस मुँह से निकला--और जगह कब तक मिलेगी?
बड़े बाबू हँसे, वही दिल दुखानेवाली हँसी जिसमे तौहीन का पहलू खास था--जनाब, मै कोई ज्योतिषी नहीं, कोई फकीर-दरवेश नही, बेहतर है इस सवाल का जवाब आप किसी औलिया से पूछे। दस्तरखान बिछा देना मेरा काम है। खाना आयेगा और वह आपके हलक मे जायगा, यह पेशीनगोई मैं नही कर सकता।
मैंने मायूसी के साथ कहा--मै तो इससे बड़ी इनायत का मुन्तजिर था।
बडे बाबू कुर्सी से उठकर बोले--कसम खुदा की, आप परले दर्जे के कूडमग्ज़ आदमी है। आपके दिमाग मे भुस भरा है। दस्तरखान का सामने आ जाना आप कोई छोटी बात समझते है? इन्तजार का मज़ा आपकी निगाह मे कोई चीज ही नहीं? हालांकि इन्तजार मे इन्सान उमरे गुज़ार सकता है। आप रोज़ाना कचहरी मे आयेगे, गरज़मन्दो से आपका साबका होगा। अमलो से आपका परिचय हो जायगा। मामले बिठाने, सौदे पठाने के सुनहरे मौके हाथ आयेगे। हुक्काम के लड़के पढ़ाइए। अगर गडे-ताबीज का फ़न सीख लीजिए तो आपके हक में बहुत मुफीद हो। कुछ हकीमी भी सीख लीजिए। अच्छे होशियार सुनारो से दोस्ती पैदा कीजिए, क्योंकि आपको उनसे अक्सर काम पड़ेगा। हुक्काम की औरते आप ही के मार्फत अपनी जरूरते पूरी करायेगी। मगर इन सब लटको से ज्यादा कारगर एक और लटका है। अगर वह हुनर आप मे है, तो यकीनन आपके इन्तजार की मुद्दत बहुत कुछ कम हो सकती है। आप बडे-बड़े हाकिमो के लिए तफ़रीह का सामान जुटा सकते है?
बडे बाबू मेरी तरफ़ कनखियो से देखकर मुस्कराये। तफरीह के सामान से उनका क्या मतलब है, यह मै न समझ सका। मगर पूछते हुए भी डर लगता था कि कहीं बड़े बाबू बिगड़ न जायें और फिर मामला खराब हो जाय। एक बेचैनी की-सी हालत मे जमीन की तरफ ताकने लगा।
बड़े बाबू ताड़ तो गये कि इसकी समझ मे मेरी बात न आयी लेकिन अब को