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बड़े बाबू
७९
 

उनकी त्योरियो पर बल नही पड़े। नहीं, उनके लहजे में हमदर्दी की झलक थी। फ़रमाया--यह तो गैर-मुमकिन है कि आपने बाज़ार की सैर न की हो।

मैने शर्माते हुए कहा--नहीं हुजूर, बन्दा इस कूचे को बिलकुल नही जानता।

बडे बाबू--तो आपको इस कूचे की खाक छाननी पडेगी। हाकिम भी आँख-कान रखते है। दिन भर की दिमागी थकन के बाद स्वभावत रात को उनकी तबीयत तफरीह की तरफ झुकती है। अगर आप उनके लिए ऑखो को अच्छा लगनेवाले रूप और कानों को भानेवाले सगीत का इन्तजाम सस्ते दामो कर सकते है या कर सके तो

मैने किसी कदर तेज होकर कहा--आपका कहने का मतलब यह है कि मुझे रूप की मडी की दलाली करनी पडेगी?

बडे बाबू--तो आप तेज क्यो होते है, अगर अब तक इतनी मोटी-सी बात आप नही समझे तो यह मेरा कसूर है या आपकी अक्ल का।

मेरे जिस्म मे आग लग गयी। जी मे आया कि बडे बाबू को जुजुत्सू के दो-चार हाथ दिखाऊॅ, मगर घर की बेपरोसामानी का खयाल आ गया। बीवी की इन्तजार करती हुई ऑखे और बच्चों की भूखी सूरते याद आ गयी। जिल्लत का एक दरिया हलक से नीचे ढकेलते हुए बोला--जी नहीं, मैं तेज़ नहीं हुआ था। ऐसी बेअदबी मुझसे नहीं हो सकती। (आँखों मे आँसू भरकर) जरूरत ने मेरी ग़ैरत को मिटा दिया है। आप मेरा नाम उम्मीदवारो मे दर्ज कर दे। हालात मुझसे जो कुछ करायगे वह सब करूँगा और मरते दम तक आपका एहसानमन्द रहूँगा।

—'खाके परवाना' से