सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

राष्ट्र का सेवक


राष्ट्र के सेवक ने कहा--देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचो के साथ भाईचारे का सुलूक, पतितों के साथ बराबरी का बर्ताव। दुनिया में सभी भाई है, कोई नीचा नही, कोई ऊँचा नही।

दुनिया ने जयजयकार की--कितनी विशाल दृष्टि है, कितना भावुक हृदय!

उसकी सुन्दर लड़की इन्दिरा ने सुना और चिन्ता के सागर मे डूब गयी।

राष्ट्र के सेवक ने नीची जात के नौजवान को गले लगाया।

दुनिया ने कहा--यह फरिश्ता है, पैगम्बर है, राष्ट्र की नैया का लेवैया है।

इन्दिरा ने देखा और उसका चेहरा चमकने लगा।

राष्ट्र का सेवक नीची जात के नौजवान को मदिर मे ले गया, देवता के दर्शन कराये और कहा--हमारा देवता गरीबी मे है, जिल्लत में है, पस्ती मे है।

दुनिया ने कहा--कैसे शुद्ध अन्तःकरण का आदमी है! कैसा ज्ञानी ! इन्दिरा ने देखा और मुस्करायी।

इन्दिरा राष्ट्र के सेवक के पास जाकर बोली--श्रद्धेय पिता जी, मैं मोहन से ब्याह करना चाहती हूँ।

राष्ट्र के सेवक ने प्यार की नजरों से देखकर पूछा--मोहन कौन है?

इन्दिरा ने उत्साह भरे स्वर मे कहा--मोहन वही नौजवान है, जिसे आपने गले लगाया, जिसे आप मन्दिर में ले गये, जो सच्चा, बहादुर और नेक है।

राष्ट्र के सेवक ने प्रलय की आँखों से उसकी ओर देखा और मुँह फेर लिया।

—'प्रेम चालीसी' से