पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१००

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मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद हालत होगी, इसके खैरख्वाहोंको किस राह चलना चाहिये। वगैरह- वगैरह सब ज़रूरी बात सबको बता दी । अगर 'आज़ाद' 'आबेहयात'न लिखते तो बहुत मुद्दत तक लोग उर्दूकी अमलीयतसे वाक़िफ़ न होते। अच्छी उर्दू लिखनेवाले बहुत होते, मगर इसकी माहिय्यतसे ४५ बेखबर ही रहते, उर्दूकी तारीख लिग्वकर 'आज़ाद'ने उद्देके खैरख्वाहोंपर बड़ा अहसान किया है। आज़ादकी शोहरत पंजाबमें 'आज़ाद'को बच्चा २ जानता है और हिन्दोस्तानमें भी बहुत शोहरत है। मगर अफ़सोस है कि वह इससे बेखबर हैं। पंजाब- के अच्छी उर्दू जानने वाले नौजवानोंमें ज्यादातर इन्हींके पैरो,४६ निक- लंगे। पंजाबी स्कूलोंपर इनकी उर्दूका बहुत भारी असर है। दरसी ४७ किताब तलाश करो, तो बहुत-सी इनकी और इनके शार्गिदोंकी बनाई निकलंगी। सरिश्ते तालीम ८ पंजाबसे इनका बहुत पुराना और गहरा ताल्लुक़ था, जो आखीर तक रहा। कह सकते हैं कि पंजाबमें इन्होंकी उर्दू जारी है। सीधी-सीधी बात और छोटे-छोटे फिकरे लिखना और इबारतमें जराफ़तकी चाटसे काम लेना 'आज़ाद'का खास तर्ज हैं। उर्दू ज़बानको सकालत४९ और उलझनसे उन्होंने खूब साफ़ किया। हिन्दोस्तानमें इनकी शोहरतका बायस इनका बनाया मशहूर "तज़करा आबेहयात" है। यही किताव इनकी तसानीफ़' में सबसे आला है और इसीसे इनकी खसूसीयत ज़ाहिर हुई। जब यह पहलीबार छपी उस वक्त 'आज़ाद'को बहुत कम लोगोंने पहिचाना था। जिसका उन्होंने 'आबेहयात'के दूसरे एडीशनमें अफ़सोस भी किया है। मगर यह अफ़- सोस देर तक न रहा। दूसरी बार इनकी खूवियोंकी शोहरत चारों ४५–वास्तविकता । ४६-अनुपायी । ४७–पाठ्य । ४८-शिक्षा विभाग । ४९-कठिनता । ५०-लिखित पुस्तकें। [ ८३ ]