पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१०१

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा तरफ़ फैलने लगी। अफ़सोस इतना ही है कि जब उन लोगोंने अच्छी तरह पहिचाना तो खुद लोगोंको पहचाननेसे मजबूर होगये । इसे हम अपनी बदनसीबीके सिवा क्या कहें ! वतन और खानदान 'आज़ाद'को जानते हैं, 'आज़ाद'के वतनको जानते हैं। मगर देहलीके चंद खास बुड्ढे बुज़ गोंके सिवा 'आज़ाद'के खान्दान और देहली- से इनके ताल्लुककी बात लोग बहुत कम जानते हैं और इनकी जला- वतनीके दर्दनाक बायस५१ को तो बिल्कुल ही नहीं जानते । 'आज़ाद' की किताबों में भी इन बातोंका कोई ज़िक्र नहीं है। 'आबेहयात' और 'दीवाने जौक से इतना पता लगता है कि 'आज़ाद'के वालिद ज़ौकके बड़े दोस्त थे और 'आज़ाद' ज़ौकके बहुत प्यारे और हरदम पास रहनेवाले शागिर्द थे। इसके सिवा और कुछ नहीं मालूम होता। यहांतक कि 'आज़ाद'के खानदानके किसी आदमी या इनके वालिदका नाम तक भी इनकी किताबोंमें नहीं आया। कितनोंहीसे इस बारेमें पूछ-ताछकी गई, मगर कुछ फ़ायदा न हुआ। मजबूर होकर मौलवी मुहम्मद ज़काउल्ला साहबसे अर्ज की गई। उन्होंने हस्बज़ ल बयान फरमाया- ____ “मौलवी मुहम्मद हुसैन आज़ादक वालिद मौलवी मुहम्मद बाक़र थे। जो शीयोंके एक फिरकाके मुजतहिद २ थे और बाइल्म५३ थे । पहिले तहसीलदारीके ओहदेपर थे। इससे किनाराकश होकर उन्होंने छापा- खाना जारी किया ; जिससे बहुत रुपया कमाया और एक नीलाम घर बनाया। इसको भी बहुत खूबीसे चलाया । ग़ज़ वह बहुत मोअज़िज़ और मुतमव्वल ५.४ रईस देहलीके थे।" आज़ादने इब्तदा५५ से देहलीके ओरिएंटल डिपार्टमेन्टमें तालीम पाई। वह पहिले शीयोंकी जमातोंमें पढ़ते थे। लेकिन फिर सुन्नियोंकी ५१-कारण । ५२--गुरू । ५३-शिक्षित । ५४-प्रतिष्ठित । ५५-आरंभ। [ ८४ ]