पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१०६

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मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद साहब फिलर साहबसे मिलने जा रहे थे-राहमें 'आज़ाद' उनसे मिले बोले, भाई ! फिलर साहबसे आपकी इतनी रस्मोराह है, हमारी कुछ सिफ़ारिश नहीं करते। मास्टर साहबने कहा, बहुत अच्छा, आज ही सही! इत्तफाक़से जब मास्टरजी फिलर साहबसे मिलने गये, तो बात करते हुए साहबने उनसे पूछा कि ईजाद६९ मुवन्निस७० है या मुज़क्कर ७१ मास्टर साहबने कहा मुज़क्कर है। फिलर साहबके सरिश्तादार मौलवी करीमउद्दीन इसी लफ़जको मुवन्निस बताते थे। इसपर मास्टर साहवने कहा कि आपके दफ्तरमें देहलीका मौलवी मुहम्मद हुसेन 'आजाद' बहुत होशियार आदमी है। फारसीमें बहुत बा-लियाक़त है। उससे बुलाकर दरयाफ्त कीजिये। 'आजाद' आये और कहा ईजाद मुज्जकर है और उसी वक्त शौदाका यह शैर पढ़ दिया- हाय यह किस भड़वेका ईजाद है। नुसखे में माजून ज़रे नव्वाद है ।। नबसे डायरेकर साहबकी निगाहमें इनकी वक्अत७२ बढ़ी । उनकी कुछ तरक्की भी हुई। जब फिलर साहब मर गये और हाल्डाम्ड पंजाब यूनिवर्सिटीके डायरेकर हुए, उन्होंने एक पर्चाको जो सरकारी अखबारके नामसे डायरेकरके दफ्तरसे निकलता था, रौनक देना चाहा। इसके लिये मास्टर प्यारेलालको इसका एडीटर और 'आज़ाद' असिस्टेन्ट एडीटर बनाया। इन दोनोंके एहतमाम७३ से उस अखबारने ऐसी रौनक पाई कि पंजाबके सब अखबार इसके सामने गर्द ७४ हो गये । गैर- सरकारी अखबारवालोंने शोर मचाया कि सरकारने हमारा रिज़क ७५ छीन लिया। इससे सरकारने वह अखबार बन्द करके रिसाला "अता- लीक" पंजाबसे निकाला। इसमें सिर्फ इल्मी मजामीन होते थे। 'आजाद' कई साल तक डायरेकरके दफ्तरमें काम करते रहे । जब पंडित मनफूल ६९-आविष्कार, ७०-स्त्रील्लिग, ७१-पुलिङ्ग, ७२-इज्जत, ७३-प्रबंध, ७४-मन्द, ७५-जीविका, [ ८९ ]