पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/११९

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा है। न मेहनतसे जो तोड़ती है। कैसी जान खपाती है। किस मुसीबतसे रोज़ी कमाती है। खदाकी कुदरत देखो । क्या बलाकी याद है। कहां- कहाँ पहुंचती है। फिर भी अपना ठिकाना नहीं भूलती। मिठास तो इसकी जान है। मगर और चीज़ भी नहीं छोड़ती। मक्खियाँ और मरे हुए कोड़े भी ग्वाती हैं। ज़ख्मी हों तो भी घसीट ले जाती हैं। देखना ! भिड़ मरी पड़ी है, इन्हें शिकार हाथ आया। कंसी चिमट गई हैं, कोई पर ग्वींचती है, कोई धड़ घसीटती है, कोई मुंहको चिमटती है, कोई पावको लिपटती है, जो है इमी खयालमें लगी है। दौड़ाये लिये जाती हैं। एक उड़ रही है । बेचारीकी मौत आन पहुंची है। भली चंगी तो है। क्योंकर जाना मरेगी ? जब इनके पर निकल आते हैं तो मग्नेक दिन करीब आ जाते हैं। यह मसल नहीं सुनी ? चिऊंटीके पर निकले हैं, यह वहां बोलते हैं, जहां कोई शखी मारता है। ज़रा रूईके पौदेका बयान सुनिये रूईका दरख्त बहुत ख बसूरत होता है, गज़ डेढ़ गज़ ऊंचा हरे- हरे पत्तं, जर्द-जर्द फल, जब फूल खिलता है, तो यह मालूम होता है कि केसर फूली है। उसका कना फल सब्ज होता है। पर ज़रा सुखी मारता है। जब पक जाता है.--और सूखता है, तो फटकर कमलकी तरह खिल जाता है। उस वक्त इसके अन्दर एक चीज़ बर्फ सी सफेद और रेशम सी नर्म दिखाई देती है, वही रूई है। उर्दूकी पहिली और दूसरी किताबमें क्या फ़क है। ज़रा दोनोंकी ईबारतोंको मिलाकर देखो। पहिलीक फ़िकर बिल्कुल सीधे-सादे हैं, मगर दूसरी में तशबीहातसे३० भी काम लिया है। देखिये रूईके बयानमें कैसी शगुफ्ता३१ तशबीहें दी हैं। फूल फटकर कमल-सा खिल जाता है, बर्फसी सफ़ेद, रेशम सी नर्म, वगैरह । गुल व बुलबुल और हुस्न व इश्क़ ३०-तुलनाएँ। ३१-उपयुक्त । [ १०२ ]