पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१२२

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राष्ट्र-भाषा और लिपि हिन्दी-भाषाकी भूमिका वनमान हिन्दी-भापाकी जन्मभूमि दिल्ली है। वहीं ब्रज-भाषासे वह उत्पन्न हुई और वहीं उसका नाम हिन्दी ग्ग्या गया। आरम्भमें उसका नाम रेखता पड़ा था। बहुत दिनों यही नाम रहा। पीछे हिन्दी कहलाई। कुछ और पीछे इसका नाम उर्दू हुआ । अब फारमी वेषमें अपना उर्दू नाम ज्योंका त्यों बना हुआ रखकर देवनागरी वस्त्रों में हिन्दी-भापा कहलाती है। हिन्दोके जन्म-समय उसकी माता ब्रज-भापा खाली भापा कहलाती थी। क्योंकि वही उस समय उत्तर-भारतकी देश-भाषा थी। पर बेटीका प्रताप शीवही इतना बढ़ा कि माताके नामके साथ ब्रज शब्द जोड़नेकी आवश्यकता पड़ी। क्योंकि कुछ बड़ी होकर बेटी भारतवर्प- की प्रधान भाषा बन गई और माता केवल एक प्रान्तकी भाषा रह गई। अब माता ब्रजभाषा और पुत्री हिन्दी-भाषा कहलाती है। यद्यपि हिन्दीकी नींव बहुत दिनोंसे पड़ गई थी, पर इसका जन्मकाल शाहजहाँके समयसे माना जाता है। मुगल सम्राट शाहजहाँके बसाये शाहजहानाबादके बाजारमें इसका जन्म हुआ। कुछ दिनोंतक वह निरी बाजारो भाषा बनी रही ! बाजारमें जन्म ग्रहण करनेसेही इसका नाम उर्दू हुआ। उर्दू तुर्की भापाका शब्द है। तुर्कमिं उर्दू, लशकर या छावनीके बाजारको कहते हैं। शाहजहानी लश्करके बाजारमें उत्पन्न होनेके कारण जन्म-स्थानके नामपर उसका नाम उद हुआ।