पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१३३

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गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि E कुशादे 'कुशादे' कहै 'वानजादे', ग्रह्यो हत्थगोरी अब साहिबादे । लग्यो चित्रकोटी 'सुरत्तान' साह्यो, बजै बे निसानं सजित्त्यो सराह्यो। गयो भग्गि कूरंभ मरहट्ठ बाली, गयो सत्थ मुक्कीनृपं वे पॅचाली । भग्यो प्रव्वती एलची झारखंडी, जि. भुज गोरी ग्रहलाज मंडी। पस्यो खान 'याकूब' संमार सावी, जि. दीन 'बन्देन' की लाज राखी । चीतोर राइ काइम्म कीन, खुम्मान पाट पग अचल दीन । नै जित्त्यो गजनेम तंज अड्डो हम्मीरां । नै जित्तयो चालुक्य पहरि मन्नाह मरीरां । यह ऊपरका सोरठा रत्नोंका है । रावल कवि था। उसी ख्यात हैं- दिराबर थापी दुरंग लुद्रवो आप घर लयो । सम बाहण त्रियसंध जूनोपाह करजमयो । आबू फैरी आण भड़जा लोरहूं भंजे । पूगलगढ़ लोनी प्रगट कतल बिहंडे कीजिये । देवराज चढ़ते दिवस रतन आज्ञ धर लीजिये । बीसलदे रासो। सं० १२७२ हंसवाहनी मृगलोचनी नारि, सीस समारइ दिन गिणइ । कीण सिरजइ उलिगाणा घरि नारि जाइ दीहाड़ उझीरितां ॥१॥ गवरीका नन्दन त्रिभुवन सार। नाद वेदा थारइ उदिर भण्डार । कर जोरे नरपति कहइ, मूसा बाह तिलक स्यन्दूर । एक दन्त उमुख झलमलइ, जणिक रोहिणी उत पै सूर ॥१॥ नालह रसायण रसभरी गाई। तुठी सारदा त्रिभुवन माई। [ ११६ ]