पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली राष्ट्रभाषा और लिपि अर्द धरती फारसी बाशद जमीन । कोह दर हिन्दी पहाड़ आमद यकीन । काह हेजम घास काठी जानिये । इंट माटी खिस्तो गिल पहचानिये । देग हांडी कफचा डोई बेवता । ताबा कजगांनस्त कढ़ाई तवा । तप ला दर हिन्दी आमद जूड़ी ताप । दर्द मर आमद सिरकी पीड़ा तग है धाप । गन्दुम गेहूं नखुद चना शाली है धान । जुरत जूनती अझ मसूर बग है पान ।। इन पंक्तियोंमें सब प्रकारके नमूने मौजद हैं । यह तो हुई फारमी और ब्रजभापाके मेलकी कविताकी बात । अब उनकी केवल ब्रजभाषाकी चीजोंका नमूना लीजिये । दुखती हुई आंखोंके इलाजके लिये वह एक पोटली बताते हैं- लोध फिटकरी मुदसिंग। हल्दी जीरा एक एक टंग । अफयें चना भर मिरच चार । उरद बराबर थोथा डार । पोस्तके पानी पोटली करे। तुरत पीर नेनोंकी हरे ।। खुसरूकी बनाई पहेलियाँ सुनिये- तरवरसे एक तिरया उतरी उसने खूब रिझाया । बापके उसके नाम जो पूछा आधा नाम बताया। आधा नाम पिता पर वाका वूझ पहेली मोरी । अमीर खुसरू यों कहें अपने नाम निबोरी ।। यह निबोलीकी पहेली है। निबोली दिल्लीमें नीमके फलको कहते हैं। ब्रजमें उसे निबोरी कहते हैं। नीम फारसीमें आधेको कहते हैं । इसीसे खुसरू पहेलीमें कहता है कि पेड़ परसे एक स्त्रीने उतरकर बहुत. [ १२२ ]