पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी-भाषा रिझाया। उसके बापका नाम पूछा तो उसने आधा नाम बताया अर्थान नीम। उसके नाममें आधा पिताका नाम है। उसका नाम पूछा तो निबोरी अर्थात नबोली अर्थात् चुप रह गई। और बता भी दिया अर्थात निबोली । ब्रजभाषामें 'ल' की जगह 'र' अधिक आता है। इससे 'न' बोली की जगह भी पहले नबोरी कहते थे। अब बजके नगरोंमें तो 'ल' की जगह 'र' बहुत नहीं बोलते, पर उसके पासही मेवातके गांवों में जल्दीको भी जरदी कहते हैं। इस पहेलीसे यह भी देखना चाहिये कि हिन्दी फारसी उस समय कितनी मिल गई थी कि हिन्दी पहेलीमें फारसी अर्थ तलाश किया जाता था। किसी औरने नीमकी पहली कही है। एक तरवर आधा नाम । अर्थ करो नहीं छोड़ो गाम । आगेकी पहेलियोंमें हिन्दी संस्कृतका मेल देखिये- फारसी वोली आईना। तुर्की सोची पाईना । हिन्दी कहते आरसी आये । मुंह देखो जो उसे बताये ।। इसका अर्थ है आईना। किस चोचलेसे कहता है कि फारसी बोली आईना। एक तो यह कि फारसी बोली मालूम नहीं, दूसरे साफ साफ अर्थही हो गया, फारसीमें उसे आईना कहते हैं। फिर कहता है हिन्दी बोलते आरसी आये। एक तो यह अर्थ हुआ कि हिन्दी बोलनेको जी नहीं होता, दूसरा आईनेकी हिन्दी आरसी है। इसी प्रकार चौथे चरणमें भी दो तरहका अर्थ है । एक यह कि तुम अर्थ बताओ तुम्हारा क्या मुंह है ? दूसरे आईनेमें मुंह देखनेका साफ इशारा है । एक और पहेलीमें फारसी और भाषाका मेल देखिये- अन्धा गूंगा बहरा बोले गूंगा आप कहाये । देख सफेदी होत अंगारा गूंगेसे भिड़ जाये। बांसका मन्दिर वाका बासा बाशेका वह खाजा। संग मिले तो सिर पर राखं वाको राव और राजा । [ १२३ ]