पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१५०

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हिन्दी-भाषा साधा पंडित निपुन कसाई । बकरी मार भैसको धावे दिलमें दरद न आई । ना हम काइके कोऊ न हमारा। बालूकी भीत पवन असवारा। उड़ चला पंछी बोलन हारा । गुरु नानक पंजाबमें गुरु नानक बड़े प्रतापी हुए। कबीरको आप बहुत मानते थे। उनके वाक्योंको अपने वाक्योंके साथ बहुत लाते थे। सिखोंके दस गुरुओंमेंसे आदि गुरु थे। अभीतक उनके शिष्योंका पन्थ सजीव है। वह भी कबीरके ढङ्गके साधु थे, परिब्राजक थे। उनके बनाये छन्द पद, दोहे, स्तुतियाँ, बहत मिलती हैं। गुरुमुवीमें तो उनका ग्रन्थही मौजूद है। देवनागरी अक्षरोंम भो उनकी रचनाके कई अंश छप गये हैं। उनमें फारसी अरबोके शब्द बड़ी बहुतायतसे मिलते हैं । उनकी कवितासे चार सौ वर्षसे कुछ पहलेकी पंजाबी भापाका खूब पता लगता है । अर्थात उस समय वह हिन्दीसे बहुत मिलती जुलती थी। जपुजीमें कहते हैं- 'कुदरती' कवण कहा विचार । वारिया न जावा एक बार । जो तुध भावे साई भलोकार । तृ ‘मदा सलामति' निरंकार । एह तन माया पहिया प्यारे लोतडालवी रंगाय । मेरे कन्त न भावे चोलड़ा प्यारे क्यों धनसे जाय । हो ‘कुरबाने' जाओ 'मेहरबाना' हो कुरबानै जाओ। हौ कुरबाने जाओ तिनांके लैन जो तेरा नाउ । लैन जो तेरा नाउ, तिनाके हो 'सद कुरबाने' जाओ। नू 'सुलतान' कहा हो. 'मीया' तेरी कवन बड़ाई। । १३३ ]