गुप्त-निबन्धावली
राष्ट्र-भाषा और लिपि
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दीन दुनीके ताजका सिर नेजे पर जाय ॥
किन्तु खड़ी बोलीवाले देखें कि यह उर्दू के कवि भी ब्रजभाषामें
कविता करते थे। सौदाने एक मरसिया ऊपर कहे छन्दमें कहा है।
उसकी ब्रजभाषा है :-
कासन कहियेबात कौन अब मनकीबूझै। रोवतहैं दिनरात हुसैनारनमें झूम।।
नैनन बरसत रक्तधार उमगत है छाती । प्यासे मातेहाय नबीके ऐसे नाती।
गेरूसे कपड़े रँगे मुखपरमले भभूत । पूठे बीबी फातमा कित गयो मेरो पूत ।।
एक मरसिया सौदाने ऐसा लिखा है जिसमें चौपाई छन्द उर्दू भाषा-
में और दोहे ब्रजभाषामें हैं-
आबिद कहते हैं यह सबसे । रोता हूँ मैं जगमें तबसे ।।
जबसे आया छोड़ मदीना । फेरन चाहा अपना जीना ।।
मैं दुखियारा हो अब रोया । बाप चचा करबलामें सोया ।।
अकबर और असगरसा भाई । तिनकी टुकभी खबर न पाई ।।
कैसा साथ हमारा छूटा। बैरीने घर तिसपर लूटा।।
लिखी हतीजोकममें मेटेमिटेनमूल । होनी थी सो होचुकी कासों कहों रसूल।।
___ इन दस पांच नमूनोंसे हिन्दी अनुरागी लोग ब्रजभाषासे उर्दू बनाने-
के समयकी उलट फेरका अनुमान करें।
खुसरूको 'जेहाले मिसकी मकुन तगाफुल' 'गजलमें ब्रजभाषा कुछ
उर्दूकी तरफ ढुलक रही थी। इसमें कैसे देखू और काटू शब्द नई तराश-
के हैं। इससे भी कुछ आगे बढ़नेका नमूना पहेलियोंमें मिलता है।
अमीर खुसरूके हाथसे उर्दूकी नींव पड़ी, तथापि उर्दूके कवियों में उसकी
गिनती नहीं हुई । उर्दूके प्रथम कविका नाम 'वली गुजराती' था। उसकी
कविताका कुछ नमूना देखिये-
जिसे इश्कका तीर कारी लगे।
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१६३
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