पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१६६

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हिन्दीमें 'बिन्दी' शीकी नागरी-प्रचारिणी सभा हिन्दीमें 'बिन्दी' चलाना चाहती है। UI यह 'बिन्दी' अक्षरके ऊपर नहीं, नीचे हुआ करेगी। ऐसी 'बिन्दी' लगानेका मतलब यह है कि उससे उर्दू शब्द हिन्दीमें शुद्ध लिखे पढ़े जाय। हिन्दीमें खाली 'ज' होता है और उदृमें 'जीम,' 'जाल', 'जे' और बड़ी 'जे', 'ज्वाद' और 'जोय' । 'जीम' के सिवा इन सब उर्दू अक्षरोंका उच्चारण 'जे' के उच्चारणके तुल्य होता है। 'जे' का उच्चारण जिह्वाके ऊपरके दाँतोंके साथ मिलनेसे होता है। नागरी-प्रचारिणीवाले चाहते हैं कि हिन्दीके 'ज' के नीचे एक बिन्दी लगाकर उर्दकी 'जे' का उच्चारण कर। हिन्दी में ऐमा उच्चारण नहीं है, क्योंकि वास्तवमें 'जे'- 'जीम' ही का विकार है। वह फारसीवालोंके कण्ठकी खराबीके सिवा और कुछ नहीं है । उस ग्वराबीको नागरी-प्रचारिणी हिन्दीमें भी फंसाना चाहती है। परन्तु इस धमानेसे क्या लाभ है, इसका पता ठीक नहीं लगता । 'जे'-'जाल' की खराबी उर्दू में यहाँ तक है कि बहुत लोग वर्षों शिक्षा पाने तथा लुगातोंको कीड़ोंकी तरह चाट जाने पर भी 'जे'-'जाल' का भेद ठीक-ठीक नहीं जान सकते। कितनीही बार वह इस झगड़ेमें पड़ते हैं, कि अमुक शब्द 'जाल' से है या 'जे' से । जब स्वयं उर्दू जानने- वालोंकी यह खराबी है, तो नागरी-प्रचारिणी सभा हिन्दीको पराये काँटोंमें क्यों घसीटना चाहती है ? लज्जत, 'जाल' से होती है, लाजिम 'जे' से और जरूर 'ज्वाद' से और जाहिर 'जोय' से। नागरी-प्रचारिणी सभाके रूलसे एक बिन्दी लगानेसे सबका उच्चारण शुद्ध होगया ! परन्तु इसमें 'जाल', 'वाद' और 'जोय' को क्या पहचान रही ? यदि 'जाल' [ १४९ ]