गुप्त-निबन्धावली
राष्ट्र-भाषा और लिपि
वैसे ही बङ्गला, हिन्दी, मराठी और गुजराती-चार भाषाओं में यदि एक
पत्र निकले तो कैसा हो ? चारों भाषाएँ अलग-अलग रहें, अक्षर केवल
देवनागरी हों। चारों भाषाओंके सम्पादक चाहे अलग-अलग रहें
अथवा संभव हो तो एक ही सम्पादक चारोंका सम्पादन करे। गुजराती,
मराठी और हिन्दीके अक्षर नागरी या देवनागरी हैं। बखड़ा है केवल
हमारे बङ्गाली अक्षरोंके लिये। पर यदि इस पत्रमें बङ्गला अक्षरोंकी
जगह देवनागरी अक्षर रहें तो क्या कुछ विशप हानि है ? शिक्षित
बंगाली मात्र प्रायः देवनागरी अक्षर पढ़ सकते हैं। स्कूल-कालिजोंमें
प्रचलित संस्कृत पुस्तकं देवनागरी अक्षरोंही में छपती हैं। जान पड़ता
है कि यह चार भापाका एक पत्र भारतीय साहित्य-जगतमें एक नई
वस्तु होगा और उत्तर भारतकी प्रधान भाषाओंको एक करनेमें बड़ी
सहायता पहुंचावेगा।”
विचार उत्तम है। हम इसका अनुमोदन करते हैं। निश्चय चार
भाषाएँ जब एक ही अक्षरों में एक पत्रमें छपेगी तो धीरे-धीरे वह बहुत
मिल-जुल जायंगी। उक्त पत्रके पाठक भी चारों भापाओंके जानने
सीखनेकी चेष्टा करंगे। देवनागरी अक्षरोंका जितना अधिक प्रचार
होगा, उतना ही भारतव्यापी होनेके योग्य भाषा हिन्दीका अधिक प्रचार
होगा। हिन्दी अब भी भारतव्यापी है। हिन्दुस्थानके किसी विभाग-
में चले जाइये, वहाँ गांववालोंकी भाषा समझना कठिन होगा। पर
वडे बडे नगरोंमें रहनेवालोंसे बात करनेमें विशप कठिनाई न होगी।
कलकत्तमें जहां खड़े होकर हिन्दीसे काम निकालना चाहो निकल
जायगा। चीनियोंसे हिन्दीमें बात की जा सकती है, अरबों और
यहूदियोंसे बात की जा सकती है। यहाँ तक कि जब एक अरबका एक
चीनीसे काम पड़ता है तो वह हिन्दीमें बात करते हैं। चीनी अपने
लहजेसे गुनगुनाता हुआ और अरव अपने ढंगसे हलक फाड़ता हुआ
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१७३
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