गुप्त-निबन्धावली .....! राष्ट्र-भाषा और लिपि
वर्षमें सबसे उत्तम अक्षर हैं। भारतकी प्राचीन भाषा संस्कृत इन्हीं
अक्षरों में लिखी जाती है। सीखनेमें भी यही सबसे जल्द आते हैं।
तिसपर भी लोगोंका इनपर वैसा प्रेम नहीं, जैसा होना चाहिये । पश्चि-
मोत्तर प्रदेश और अवध खास हिन्दुस्थान है। हिन्दी वहांकी भाषा
है। पर देवनागरी अक्षरोंका जो खास हिन्दी अक्षर हैं, वहाँ बहुत
प्रचार नहीं। अपनी हिन्दीको लोग नाहक फारसी अक्षरों में लिखते हैं,
देवनागरी अक्षर एक महीनेमें आजाते हैं, पर उन्हें नहीं सीखते । फारसी
अक्षर तीन चार सालमें भी शुद्ध लिखने नहीं आते, उन्हें सीखते हैं।
___बिहारवाले हिन्दी बोलेते हैं। उनकी अदालती भाषा भी सौभाग्य-
वश हिन्दी है। पर वह लोग देवनागरी अक्षरोंको छोड़कर अपने टेढ़े-
मेढ़े कथी अक्षरोंसे प्रसन्न हैं। यदि वह लोग देवनागरी अक्षर लिखे तो
उनका बहुत लाभ है। 'किस' की जगह-कीश' और 'उस' की जगह
'उश' न लिखे। पर ऐसा करना उन्हें बहुत भारी जान पड़ता है। .
पञ्जाबमें सदासे देवनागरीका प्रचार है। पर अब सिख लोग गुर-
मुखी अक्षरोंके तरफदार हैं। गुरमुखी अक्षरोंको वह जातीय अक्षर
बनाकर नागरीको दूर करना चाहते हैं। गुरमुखी अक्षर नागरीहीका
एक भद्दा स्वरूप है। उन्हें सिख पसन्द करते हैं और सुन्दर नागरीसे
भागते हैं। यदि सिख लोग गुरमुखी छोड़कर नागरीमें ग्रन्थ साहब
छपवाते और नागरीसे प्रेम रखते तो उनके ग्रन्थी लोग एक एक अक्षर
टटोल टटोलकर न पढ़ते और विद्या-शून्य नहीं हो जाते।
गुजरातो अक्षर नागरीही का एक रूप है। आधी मात्रा होनेसे
उससे नागरीका काम ठीक नहीं निकल सकता, तथापि गुजरातो उन्हें
छोड़कर नागरीको पसन्द नहीं करते। हां, महाराष्ट्र लोगोंने अपनी
भाषामें देवनागरी अक्षरकोही पसन्द किया है । यद्यपि लिखने में मराठी-
वाले भी विलक्षपाही हैं। पर उनकी पुस्तकं देवनागरीमें हैं। यदि
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