पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१८२

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देवनागरी अक्षर इसी प्रकार गुरमुखी, गुजराती और कैथी अक्षरोंके स्थानमें नागरीका प्रचार हो जावे तो अक्षरोंके सिवा भाषाओंका भी बहुत कुछ मेल-मिलाप हो सकता है। एक दूसरेकी भाषाको लोग जल्द सीख सकते हैं। ___ सबसे गजब बङ्गाली लोग करते हैं। उनके अक्षर और मात्राएँ ठीक देवनागरीके बराबर हैं। तिसपर भी वह देवनागरीको छोड़कर उसीके विकृत स्वरूप बङ्गाक्षरको पसन्द करते हैं। अपने उन बक्राकार अक्षरों- को बड़ी फुर्तीसे लिखते हैं, पर नागरीमें अपना नाम भी लिखना उन्हें पहाड़ हो जाता है। संस्कृत पुस्तकोंको भी टेढे उल्टे बङ्गाक्षरों में छपवाते हैं। बङ्ग श्वर छोटे लाट उडबर्नने बङ्गालियोंकी एक साहित्य-सभामें कहा था कि आप लोगोंको बङ्गाली हरफ छोड़कर देवनागरी अक्षरोंसे काम लेना चाहिये। इससे संस्कृतकी बड़ी उन्नति होगी। पर वह लोग भी इस ओर ध्यान नहीं देते। यदि देते तो उन्हें ह्रस्व दीर्घका बोध हो जाता और उनकी जबानका मोच निकलकर उन्हें दन्त्य और तालव्यका बोध हो जाता। ___ उड़िया भाषाके अक्षर खूबही मेंड़कोंकी शकलके हैं। हरफ क्या हैं मानो मेंड़क बैठे हैं। हरफका असली आकार जरासा नीचे छिपा हुआ रहता है। ऊपरसे गोलाकार लकीर इस प्रकार घेरा लगाती है मानों हनुमानजी पूंछका हलका लगाये बैठे हैं। अपने ऐसे विचित्र हरफों- के सामने उन्हें देवनागरीकी तरफ ध्यान तक नहीं होता। वह संस्कृत भी उन्हीं अपने मेंडकनुमा अक्षरों में लिखते हैं। ___ सबके गुरु हैं, मारवाड़ी और मुड़िया हरफवाले। इनके हरफोंका कुछ ठिकानाही नहीं। एकही कोठीमें दस गुमाश्ते दस प्रकारके हरफ लिखते हैं। एकके हरफ दूसरा सहसा नहीं समझ सकता। अपने इन हरफोंके पीछे वह लोग विद्याही खो बैठे । यदि यह सब अक्षर एक होकर देवनागरी वनजावं तो कितना अच्छा हो ? –भारतमित्र १९०२ ई० [ १६५ ]