पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२१३

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गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत आदमियोंसे पीछे रहनेवाले नहीं हैं। वरञ्च दो एक गुण भारतवा- सियोंमें ऐसे हैं कि संसार भरमें किसी जातिके लोग उनका अनुकरण नहीं कर सकते। हिन्दुस्थानी फारसी पढ़के ठीक फारिसवालोंकी भांति बोल सकते हैं, कविता कर सकते हैं। अंग्रेजी बोलने में वह अंग्रेजोंकी पूरी नकल कर सकते हैं, कण्ठ तालूको अंग्रेजोंके सदृश बना सकते हैं। पर एक भी अंग्रेज ऐसा नहीं है, जो हिन्दुस्थानियोंकी भांति साफ हिन्दी बोल सकता हो। किसी बातमें हिन्दुस्थानी पीछे रहनेवाले नहीं हैं। हां दो बातोंमें वह अंग्रेजोंकी नकल या बराबरी नहीं कर सकते हैं। एक तो अपने शरीरके काले रंगको अंग्रेजोंकी भांति गोरा नहीं बना सकते और दूसरे अपने भाग्यको उनके भाग्यमें रगड़ कर बराबर नहीं कर सकते । किन्तु इस संसारके आरम्भमें बड़ा भारी पार्थक्य होने पर भी अन्तमें बड़ी भारो एकता है। समय अन्तमें सबको अपने मार्ग पर ले आता है। देशपति राजा और भिक्षा मांग कर पेट भरनेवाले कङ्गा- लका परिणाम एकही होता है। मट्टी मट्टीमें मिल जाती है और यह जीतेजी लुभानेवाली दुनियाँ यहीं रह जाती है। कितनेही शासक और कितनेही नरेश इस पृथिवी पर होगये, आज उनका कहीं पता निशान नहीं है। थोड़े थोड़े दिन अपनी अपनी नौबत बजा गये, चले गये । बड़ी तलाशसे इतिहासके पन्नों अथवा टूटे फूटे खण्डहरों में उनके दो चार चिह्न मिल जाते हैं। माई लार्ड ! बीते हुए समयको फिर लौटा लेनेकी शक्ति किसीमें नहीं है, आपमें भी नहीं है । दृरकी बात दूर रहे, इन पिछले सौ सालहीमें कितने बड़े लाट आये और चले गये। क्या उनका समय फिर लौट सकता है ? कदापि नहीं। विचारिये तो मानो कल आप आये थे, किन्तु छः साल बीत गये। अब दूसरी बार आनेके बाद भी कितनेही दिन बीत गये तथा बीत जाते हैं। इसी प्रकार उमरें बीत [ १९६ ]