पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२२४

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एक दुराशा अमृत रूपी वचनोंके सुननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ या खाली पेड़ों पर बैठी चिड़ियोंका शब्दही उनके कानों तक पहुँचकर रह गया ? क्या कभी सैर तमाशेमें टहलनेके समय या किसी एकान्त स्थानमें इस देशके किसी आदमीसे कुछ बातें करनेका अवसर मिला ? अथवा इन देशके प्रतिष्ठित बेगरज आदमीको अपने घरपर बुलाकर इस देशके लोगोंके सच्चे विचार जाननेकी चेष्टा की ? अथवा कभी विदेश या रियासतोंके दौरेमें उनलोगोंके सिवा जो झुकझक कर लम्बी सलामें करने आये हों, किसी सञ्चे और बेपरवा आदमीसे कुछ पूछने या कहनेका कष्ट किया ? सुनते हैं कि कलकत्तेमें श्रीमानने कोना कोना देव डाला । भारतमें क्या भीतर और क्या सीमाओंपर काई जगह देखे बिना नहीं छोड़ी । बहुतोंका एसाही विचार था। पर कलकत्ता यूनिवर्सिटीके परीक्षोत्तीर्ण छात्रोंकी सभामें चंसलरका जामा पहनकर माई लार्डने जो अभिज्ञता प्रगट की, उससे स्पष्ट हो गया कि जिन आखोंसे श्रीमान्ने देखा, उनमें इस देशको बान ठीक देखनेकी शक्ति न थी। ___ सारे भारतकी बात जाय, इस कलकत्तेहीमें देखनेकी इतनी बात हैं कि केवल उनको भली भांति देख लेनेसे भारतवर्षकी बहुतसी बातोंका ज्ञान होसकता है। माई लाडके शासनके छः साल हालवेलके स्मारकमें लाठ बनवाने, ब्लैक-हालका पता लगाने, अवतरलोनीको लाठको मैदानसे उठवाकर वहां विक्टोरिया मिमोरियल-हाल बनवाने, गवर्नमेष्टहौसके आसपास अच्छी रोशनी, अच्छे फूटपाथ और अच्छी सड़कोंका प्रबन्ध करानेमें बीत गये। दूसरा दौर भी वैसेही कामोंमें बीत रहा है । सम्भव है कि उसमें भी श्रीमानके दिलपसन्द अंग्रेजी मुहल्लोंमें कुछ और भी बड़ी-बड़ी सड़क निकल जाय और गवनेमेण्टहौसकी तरफके स्वर्गकी सीमा और बढ़ जावे । पर नगर जैसा अन्धेरेमें था, वैसाही रहा, क्योंकि उसकी असली दशा देखनेके लिये ओरही प्रकारकी आंखोंकी जरूरत [ २०७ ]