पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२२५

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत है । जब तक वह आंखें न होंगी, यह अंधेर योंही चला जावेगा। यदि किसी दिन शिवशम्भुशाके साथ माई लार्ड नगरकी दशा देखने चलते तो वह देखते कि इस महानगरकी लाखों प्रजा भेड़ों और सुअरोंकी भांति सड़े-गन्दे झोपड़ोंमें पड़ी लोटती है । उनके आस पास सड़ी बदबू और मैले सड़े पानीके नाले बहते हैं, कीचड़ और कूड़ेके ढेर चारों ओर लगे हुए हैं। उनके शरीरांपर मैले-कुचले फटे-चिथड़े लिपटे हुए हैं। उनमेंसे बहुतोंको आजीवन पेट भर अन्न और शरीर ढाकनेको कपड़ा नहीं मिस्ता । जाड़ोंमें सर्दीसे अकड़ कर रह जाते हैं और गर्मीमें सड़कों पर घूमते तथा जहां तहाँ पड़ते फिरते हैं। बरसातमें सड़े सीले घरोंमें भीगे पड़े रहते हैं। सारांश यह कि हरेक ऋतुकी तीव्रतामें सबसे आगे मृत्युके पथका वही अनुगमन करते हैं। मौतही एक है, जो उनकी दशा पर दया करके जल्द-जल्द उन्हें जीवन रूपी रोगके कष्टसे छुड़ाती है ! परन्तु क्या इनसे भी बढ़ कर और दृश्य नहीं हैं ? हाँ हैं, पर जरा और स्थिरतासे देखनेके हैं। बालूमें बिखरी हुई चीनीको हाथी अपने सूडसे नहीं उठा सकता, उसके लिये चिवटीकी जिह्वा दरकार है। इसी कलकत्तमें इसी इमारतोंके नगरमें माई लार्डकी प्रजामें हजारों आदमी ऐसे हैं, जिनको रहनेको सड़ा झोपड़ा भी नहीं है। गलियों और सड़कों पर घूमते-घूमते जहां जगह देखते है, वहीं पड़ रहते हैं । पहरेवाला आकर डण्डा लगाता है तो सरक कर दूसरी जगह जा पड़ते है। बीमार होते हैं तो सड़कोंही पर पड़े पांव पीटकर मर जाते हैं। कभी आग जलाकर खुले मैदान में पड़े रहते हैं। कभी-कभी हलवाइयोंकी भट्ठियोंसे चमट कर रात काट देते हैं। नित्य इनकी दो चार लाश जहां तहांसे पड़ी हुई पुलिस उठाती है। भला माई मार्ड तक उनकी बात कौन पहुँचावे ? दिल्ली- दरबारमें भी जहाँ सारे भारतका वैभव एकत्र था, सैकड़ों ऐसे लोग दिल्ली- की सड़कोंपर पड़े दिखाई देते थे, परन्तु उनकी ओर देखनेवाला कोई न था। [ २०८ ]