गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत अश्वत्थामाकी यह वाणी सुनकर अपार हर्ष हुआ था कि मैं पांचों पाण्डवोंके सिर काटकर आपके पास लाया हूं। उसी प्रकार सेनासुधार रूपी महाभारतमें जंगीलाट किचनर रूपी भीमकी विजय-गदासे जर्जरित होकर पदच्युति-हृदमें पड़े इस देशके माई लार्डको इस खबरने बड़ा हर्प पहुंचाया कि अपने हाथोंसे श्रीमानको बङ्गविच्छेदका अवसर मिला। इसी महाहर्पको लेकर माई लार्ड इस देशसे विदा होते हैं, यह बड़े सन्तोपकी बात है ! अपनोंसे लड़कर श्रीमानकी इज्जत गई या श्रीमानही गये, उसका कुछ खयाल नहीं है, भारतीय प्रजाके सामने आपकी इज्जत बनी रही, यही बड़ी बात है। इसके सहारे स्वदेश तक श्रीमान मोछों पर ताव देते चले जासकते हैं। ___ श्रीमानके ग्वयालके शासक इस देशने कई बार देखे हैं। पांच सौसे अधिक वर्ष हुए तुगलक वंशके एक वादशाहने दिल्लीको उजाड़ कर दौलताबाद बसाया था। पहले उसने दिल्लीकी प्रजाको हुक्म दिया कि दौलताबादमें जाकर बमो। जब प्रजा वड़ कष्टसे दिल्लीको छोड़कर वहाँ जाकर बसी तो उसे फिर दिल्लीको लौट आनेका हुक्म दिया। इस प्रकार दो तीन बार प्रजाको दिल्लीसे देवगिरि और देवगिरिसे दिल्ली अर्थात् श्रीमान मुहम्मद तुग़लकके दौलताबाद और अपने वतनके बीच में चकराना और तबाह होना पड़ा। हमारे इस समयके माई लाडने केवल इतनाही किया है कि बङ्गालके कुछ जिले आसाममें मिलाकर एक नया प्रान्त बना दिया है। कलकत्तंकी प्रजाको कलकत्ता छोड़कर चट- गांवमें आवाद होनेका हुक्म तो नहीं दिया। जो प्रजा तुगलक जैसे शासकोंका खयाल बरदाश्त कर गई, वह क्या आजकलके माई लार्डके एक खयालकी बरदाश्त नहीं कर सकती है ? सब ज्योंका त्यों है। बङ्गदेशकी भूमि जहाँ थी वहीं है और उसका हरएक नगर और गांव जहाँ था वहीं है। कलकत्ता उठाकर चीरापूंजीके [ २१८ ]
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